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सन्नाटा

Mohan pathak 30 Mar 2023 कहानियाँ अन्य पलायन व्यथा 35751 0 Hindi :: हिंदी

‌                                सन्नाटा                                               
    धीरज उस दिन अपना पहला वेतन लेकर घर पहुंचा था। वह घर जहां उसका अपना कोई नहीं था जो धीरज की इस खुशी में उसका साथ देता।यद्यपि वह जानता था घर में उसकी खुशी में शामिल होने वाला कोई नहीं है फिर भी न जाने कौन सी याद उसे घर तक खींच लाई थी।धीरज के घर में कोई नहीं था। उसकी मां उसके शैशवावस्था में ही परलोक सिधार गयी थी।उसे अपनी मां की सूरत भी याद नहीं है।जब उसने होश संभाला तो खुद को अपनी चाची की छत्रछाया में पाया।धीरज के पिताजी ने नौकरी के कारण  धीरज के  पालन  पोषण का भार उसकी चाची को सौप दिया था।उन्होंने धीरज के भविष्य को लेकर दूसरा विवाह नहीं किया। उनका उद्देश्य उसे पढ़ा लिखा कर किसी अच्छी नौकरी में लगा देना ही रहा।उसके लिए उन्होंने जीवनभर परेशानियों का सामना किया।होनी बलवान होती है उसे कौन टाल सकता है।एक दुर्घटना में धीरज के पिताजी का एक हाथ नहीं रहा।उन्हें अपनी नौकरी में दिक्कत महसूस होने लगी तो वे धीरज के साथ अपने गांव वापस आकर रहने लगे। धीरज उस समय मात्र सात साल का ही था। उसे  पास के  प्राथमिक स्कूल में भर्ती करवाया। खुद खेती के काम में लग गए। शुरू शुरू में उन्हें खेती के काम करने में दिक्कत होती परन्तु धीरे धीरे आदत पड़ गयी। खेती से छोटे से परिवार का भरण  पोषण आराम से हो जाता ।जो अनाज बच जाता उसे बेचकर जरूरी सामान की भी पूर्ति हो जाती ।धीरज की चाची भी बराबर मदद करती ही रहती।सब कुछ एक बार फिर से ठीक चल रहा था। धीरज भी हाईस्कूल पास हो गया था।  अब धीरज को आगे की पढ़ाई के लिए दूर भेजना जरूरी हो गया।अतः उसे घर से दूर इंटर की पढ़ाई के लिए भेज दिया।घर में धीरज के पिताजी ही अकेले रह गये । धीरज शहर में रहकर पढ़ाई करने लगा। यहां घर में धीरज के पिताजी की तबीयत खराब रहने लगी।अस्वस्थता में भी  उन्होंने परिश्रम करना नहीं छोड़ा। छोड़ते भी कैसे ।धीरज का सारा उत्तरदायित्व उन्हीं के ऊपर था।उनकी एक ही इच्छा थी धीरज किसी सरकारी नौकरी में लग जाय ।घर में बहू आ जाय।उसके बाद उनकी आंखे बन्द भी हो जाए तो कोई मलाल नहीं।कम से कम मरने के बाद धीरज की  इजा  से कह सकू कि देख मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी कर आया हूं। एक तू है सांसारिक जिम्मेदारी से भागकर पहले ही चली आयी।                                            
  किसी तरह उन्होंने धीरज को  इंटर पास करवाया।अब वे थक चुके थे। उन्होंने धीरज को आगे की पढ़ाई पूरी करने में असमर्थता व्यक्ति की।धीरज भी इस बात को समझ रहा था।पिताजी  का स्वास्थ्य ठीक नहीं है । उनकी सेवा का अवसर मिला है तो मुझे घर पर ही रहना होगा। यद्यपि उसकी इच्छा  बी टी सी या बी एड कर किसी स्कूल में अध्यापक की नौकरी करे। अपने घर के पास ही कहीं मिल जाए तो बहुत अच्छा होता। वह नौकरी के साथ घर को भी संभाल लेता और पिताजी की भी सेवा हो जाती। अब उसने प्राइवेट फार्म भरकर आगे की पढ़ाई पूरी करने का निश्चय किया।ताकि घर पर रहकर पिताजी की सेवा के साथ घर खेती का काम भी संभाल लेगा। पिताजी का स्वास्थ्य दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा था। घर की हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि वह अपने पिताजी का इलाज किसी अच्छे अस्पताल में कर सके।  उसने  अपनी चाची से कुछ रुपए लेकर अपने पिताजी को किसी अच्छे शहर में ले जाकर दिखाना चाहा मगर उसके पिताजी ने यह कहकर मना कर दिया कि बेटा, अब समय आ गया लगता है। तेरी  इजा बुला रही है। धीरज के पिताजी के मना करने पर भी धीरज अगले दिन उन्हें शहर ले जाने की तैयारी कर रहा था।उसी शाम को उन्होंने धीरज को अपने पास बुलाकर कहा, बेटा एक बोझ लिए जा रहा हूं। मुझे माफ़ करना मैं अपना उत्तरदायित्व पूरा कर पाने में सफल नहीं हो पाया। बेटा सुखी रहना।सबसे मिल जुलकर रहना। तेरे कष्टों का फल भगवान तुझे अवश्य देगा। पूर्वजों की थाती है।इसे भूल न जाना। एक अच्छी बहू आ जायेगी तो घर अपने आप संभाल लेगी। जो इस घर को संभाले, ऐसी बहू ले आना। मैं ने तेरी चाची से कह दिया है वह कुछ न कुछ अवश्य कर देगी। तू मना मत करना । यही मेरी अंतिम इच्छा है। बेटा मुझे वचन दे। बेटा मुझे व च न द कहते कहते धीरज के पिताजी ने उस दिन अंतिम सांस ली।पिताजी के निधन के बाद धीरज ने प्राइवेट फार्म भर कर अपनी पढ़ाई पूरी की।उसकी पढ़ाई पूरी करने में उसकी चाची ने खूब मदद की। उसने धीरज को अपने बेटे के साथ शहर भी भेजना चाहा।मगर धीरज ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मेरे चले जाने से तुम अकेली रह जाओगे। प्रकाश शहर में पढ़ाई के लिए गया है। एक अकेली  तुम कैसे घर संभाल पाओगी। मेरे रहते थोड़ी मदद हो जाएगी। मैं अपनी पढ़ाई घर पर रहकर ही पूरी कर लूंगा।
‌ अपनी चाची की मदद से ही धीरज ने एम ए करने के बाद एक साल पिथौरागढ़ से बी एड किया। उसी के फलस्वरूप उसे एक सरकारी स्कूल में नौकरी लग गयी। उस दिन  पहला वेतन मिलने पर वह सीधे अपने घर पहुंचा ।परन्तु घर में अब न तो चाची न प्रकाश। विगत दस वर्षों में इतना कुछ बीत गया था जिस कारण घर जिसे उसने अपने  बाबू को संभाल कर रखने का वचन दिया था। वह उसे पूरा नहीं कर पा रहा था।मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए उसने अपने आंसुओं से घर की देहरी को अश्रुजल से पवित्र कर दिया। वह पुराने दिन याद करता है। आज उसकी चाची को गुजरे एक साल से अधिक हो गया था। चाचाजी आतंकवादियों से मुठभेड़ में सात साल पहले ही शहीद हो चुके थे।पूजा का विवाह हो चुका था।वह अपने ससुराल में खुश थी। प्रकाश भी बी टेक करने के बाद बैंगलुरू में नौकरी में लग गया था।उसका भी विवाह हो चुका था।वह अपने बच्चों के साथ वही रहता था। चाची जी के वार्षिक श्राद्ध में चार दिन के लिए घर आया था फिर चले गया था।चार दिन बाद घर फिर से वीरान हो गया ।धीरज का भी विवाह हो चुका था। चाची ने अपने जेठजी को दिया वचन पूरा कर लिया था। यद्यपि धीरज मना करता रहा था।अभी मेरी सरकारी नौकरी नहीं है।प्राइवेट स्कूल की नौकरी से कैसे मैं अपना ओर उसका निर्वहन कर पाऊंगा। परन्तु धीरज की चाची ने अपने जेठजी को दिए वचन का वास्ता ओर प्रकाश का उदाहरण देकर कहा वह भी तो प्राइवेट नौकरी करता है।उसका विवाह हो गया है।अब मैं चाहती हूं मेरे रहते तेरा घर बसा दू।फिर मेरी आंखे बंद भी हो जाएं तो मुझे दुख नहीं होगा। मैं अपने दिए वचन के बोझ तले दबी जा रही हूं।इसी वैशाख में तेरा विवाह करना है मैं कुछ नहीं जानती । देख बेटा मैं ने तुझमें और प्रकाश में कभी अंतर नहीं समझा। बल्कि तुझे प्रकाश से भी अधिक प्यार दिया।प्रकाश कई बार मुझसे कहता भी था।उसने भी बचपन से इस बात को अनुभव किया।मुझे मेरा यह कर्तव्य पूरा कर लेने दे फिर तू जो करना चाहे कर लेना ।प्रकाश अपने बच्चों को लेकर चला गया है ।मुझसे अब काम नहीं हो पाता है ऐसे में घर में एक बहू आ जायेगी तो घर का काम संभाल लेगी।यही तेरे पिताजी की भी अंतिम इच्छा थी। पिताजी की अंतिम इच्छा का हवाला देकर चाची ने धीरज को कर्तव्य बोध से बांध दिया था।उसने विवाह के लिए जैसा ठीक समझो चाची करो।कहकर अपनी स्वीकृति दे दी थी।धीरज का विवाह हो गया।धीरज शहर के स्कूल में पढ़ाता और चार बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपना उत्तरदायित्व पूरा करता।छुट्टियों में घर आ जाता। घर के काम में मदद करता ।एक दिन धीरज की बीबी ममता ने उससे उसके साथ चलने की जिद पकड़ ली। मै घर पर नहीं रहूंगी। मैं भी कहीं कुछ करूंगी।घर का काम धंधा मुझसे नहीं होता है।उसने चाची से भी जाने की इजाजत ले ली थी ।चाची दुनियादारी जानती थी पराई लड़की को जोर जबरदस्ती बांधा नहीं जा सकता है।फिर गांव में जो भी नौकरी करते उन सबके बच्चे उन्हीं के साथ रहते थे।वह खुद अपनी बहू को नहीं रोक पाई तो आज धीरज की बहू को कैसे रोक लेती।लोग तरह तरह की बातें बनाते किअपनी बहू बेटे को तो शहर भेज रखा है।उस धीरज की बहू को घर की जिम्मेदारियों में बांध रखा है।उसने प्रकाश से कहकर बहू को प्रकाश के साथ भेज दिया।                                           अब घर में अकेली चाची रह गई ।कब तक खटती।जिन्दगी भर घर गृहस्थी में फसी रही ।कभी अपने सुख के बारे में नहीं सोचा ।धीरे धीरे उसका स्वास्थ्य बिगड़ता गया और एक दिन उसने यह संसार त्याग दिया।उस वक्त उसके पास कोई भी नहीं था। गांव वालों ने सूचना देकर प्रकाश और धीरज को बुलाया।कुछ दिन पहले जब तबीयत खराब थी तो धीरज ही उसे अपने साथ शहर के अस्पताल दिखाने ले गया था।कुछ दिन वही रहने का आग्रह करने पर भी चाची वहां नहीं रुकी थी। शायद चाची को अपने अंत समय का आभास हो गया था।धीरज उसे घर पहुंचा गया।एक दो दिन बाद चाची की तबीयत थोड़ी ठीक होने पर चाची ने ही धीरज को यह कहते हुए कि बहू अकेली है तू जा । अब मेरी तबियत ठीक है।उस दिन धीरज को चाची की आवाज में कुछ द्रवित होता सा लगा।फिर उसने सोचा कमजोरी की वजह से आवाज में कंपकपी है ।वह शहर आ गया। धीरज के आने के एक सप्ताह बाद ही उसे चाची की मृत्यु का समाचार मिला।उस दिन भी वह बहुत रोया।चाची मुझे माफ़ करना मै ने तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना था।मेरी मति मारी गई थी।तुम्हे थोड़ा ठीक होने देता। परन्तु मैं चाची की ममता को समझ ही नहीं पाया था। बिना विलंब के चले गया था। वह शायद तुम्हारी अंतिम समय की स्फूर्ति थी।जैसे बुझता दीपक अंतिम क्षण में तेज हो जाता है। और आज भी धीरज घर की देहरी की तरफ देखकर रोने लगता है।उसे लगता है अभी उसकी चाची आएगी और कहेगी अरे धीरज बेटा यह क्यों बैठा है आ अंदर आ।उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरेगी। इसी इंतजार में वह न जाने कब से आंसू बहाए जा रहा था।पूरी देहरी गीली हो गई थी तभी किसी कि तेज कड़क आवाज ने उसे झकझोर दिया।उसे लगा जैसे किसी ने उसे गहरी निद्रा से जागा दिया हो।वह पुरानी स्मृतियों में डूबा एक सुखद स्वप्न का सा आभास कर रहा था।उनीदी आंखों से सामने देखा तो वहां खड़कु दा उसे आवाज दे रहा था। खडकु दा को देखते ही उसे एक बार फिर से पुरानी स्मृतियों कि और धकेल दिया।                          
 एक दिन  चाची का वह उपदेश जो उसने प्रकाश को दिया था सुनाया।चाची के वार्षिक श्राद्ध में जब प्रकाश घर आया था तभी उसने मुझे कहा था।यह उन दिनों की बात है जब प्रकाश इंटर में था और मै घर पर ही प्राइवेट बी ए कर रहा था।उसने कहा था। उस दिन  प्रातः काल ही खड़कू लकड़ी का गठ्ठर ले के आ गया था। इजा तब तक  गाय बछियों को चारा देकर आ गयी थी। इजा ने चाय बनायी । मुझे भी चाय दी। चाय के साथ उपदेश भी। देख परिया खड़कू से सीख। कब जंगल गया होगा , कब लकड़ी इकट्ठा कर ले आया। क्या करेगा कल। ऐसे सो सो कर कौन खिलायेगा। मेरे हाथ पांव चलने तक कर ले जितनी  मटर गस्ती करनी।फिर काव भी नहीं पूछेगा। इजा के उपदेश सुनकर हमने भी बिस्तर छोड़ने  का निश्चय  कर लिया। असल में इजा की इस झिड़की में  ममता, वात्सल्य, प्रेरणा, चिन्ता,  शिक्षा, त्याग, सहानुभूति और समर्पण सब कुछ  नजर आता है। बचपन में इसे झिड़की समझता था। यह मेरी कमअक्ल की निशानी थी। आज इजा नहीं है किन्तु उसका साहचर्य  हमेशा अपने इर्द गिर्द पाता हूँ। आज मेरी प्रातः इजा की तरह ही ब्रह्ममुहूर्त में हो जाती है। इसका कारण मैं उसकी स्मृति को ही मानता हूँ।  मैंने जब से होश सम्भाला इजा को सोते नहीं देखा क्योंकि जब तक मेरी भोर होती है इजा का आधा काम निपट चुका होता है। और रात जब मैं गहरी नींद में होता हूँ उसका काम जारी रहता है। वर्षा हो शीत हो, या ग्रीष्म उसकी सुबह रोज मुँह अंधेरे ही हो जाया करती।जब तक जीवित रही उसकी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं दिखायी दिया। उसके लिए सब दिन एक समान। न कुछ पाने की,न कुछ विशेष करने की इच्छा। प्रातः सबसे पहले जागना देर रात्रि में सबसे बाद में सोना  उसकी दिनचर्या में शामिल था। उसे कभी बीमारी में भी बिस्तर पर पड़े नहीं देखा। शायद वह सोचती मेरे न उठने से घर का कारखाना बन्द हो जाएगा। इसलिए सर्दी ,जुखाम, बुखार, सिरदर्द,बदनदर्द,बेचैनी आदि को उसने कभी बीमारी समझा ही नहीं। मैं आज अनुभव करता हूँ ऐसी जिजीविषा केवल इजा में ही हो सकती है।              
 पिताजी के साथ मेरा सहचरी अधिक रहा नहीं ।जब तक जीवित थे साल में एक बार ही घर आते। तब में बहुत छोटा था जब तक कुछ समझने लायक हुआ तो उन्हें शहीद हो जाने का समाचार सुना तब शहीद शब्द का भी सही अर्थ नही समझ पाया था। ईजा से ही सुना जब घर आते तो इजा को थोड़ा आराम  हो जाता।घर के कुछ काम इजा के आने तक कर दिया करते ।  उन दिनों इजा को बना बनाया भोजन मिल जाता। मुझे याद है इजा कहती  परिया के बाबू तुम मेरी आदत खराब मत किया करो।चार दिन  के लिए घर आते हो, मेरी काम करने की आदत छूट जाती है। आपके जाने के बाद  एक तो आपकी  याद आती है। और दूसरा इधर उधर से घर आते ही खाना बनाने का मन ही नहीं करता है। ये परिया  न हो तो मैं ऐसे ही पानी पीकर रह जाऊं। तब पिताजी कहते , परिया  की इजा ऐसा क्यों कहती है।खेत में काम करते करते थक जाती होगी। कोई घर में पानी पिला दे तो बड़ा सुकून मिलता है। ये परिया  भी  अभी छोटा है। उसकी देखभाल भी करनी हुई। मैं भी सोचता हूं दो चार दिन घर में हूं तो थोड़ा कम धंधे में मदद कर दू।  पूजा भी अभी छोटी है थोड़ा बड़ी हो जाए तो तेरा हाथ बटाने को हो जाएगी। पिताजी के शहीद हो जाने पर ईजा खूब रोई थी।तब मै यह सब नहीं समझ पाया था। I इजा ने अपना सुख देखे बिना मुझे इस लायक बनाया। पूजा को भी इंटर तक पढ़ाकर उसका विवाह करवाया।जिन्दगी भर खटती रही।जब उसे सुख देने की बारी आई तो हमने भी मुंह मोड़ लिया। मैं ने प्रभा को बहुत समझाया।तुम नौकरी छोड़कर कुछ साल जब तक इजा है उसकी सेवा करो।परन्तु उसने अपनी पढ़ाई का वास्ता ,कैरियर का वास्ता दे मुझे चुप करा दिया। न चाहते हुए भी मुझे इजा को अकेले छोड़ना पड़ा था।वो तो धीरज दा आप थे आपने इजा को संभाले रखा। यह कहकर प्रकाश रो दिया था।उसके आंसुओं में मजबूरी दिखाई दे रही थी।मजबूरी थी ।पारिवारिक जिम्मेदारी पूरी करने की, पतिधर्म निभाने की, अपने बिखरते घर को बचाने की और इजा के बसाए संसार को उजड़ने से बचाने की मजबूरी थी। उस समय मैने समय की नजाकत को समझते हुए अन्य धर्म छोड़कर केवल पतिधर्म को निभाया। परन्तु मेरे पतिधर्म ने इ जा की तपस्या को व्यर्थ कर दिया।आज घर को देख रोना आता है। कितनी मेहनत त्याग और कर्तव्य बोध से संजोया था।क्या आज की पीढ़ी अपने पूर्वजों के त्याग को समझने में शून्य हो गई है।          
  मुझे अच्छी तरह याद है एक बार इज्जा ने कहा था इस घर  को घर बनाए रखने में तेरे ताऊ जी का बहुत बड़ा हाथ है।कहते थे  पूर्वजों की थाती है ।कहीं सुकून न मिलने पर अपने ही घर में सुकून मिलता है। मैने भी एक बार तेरे पिताजी के साथ जाने की इच्छा व्यक्त की थी।तब उन्होंने मुझे सम झाते हुए कहा था।बेटा मैं मना तो नहीं करता हूं परन्तु एक न एक दिन घर ही आना पड़ेगा।कहीं ऐसा न हो घर घर न रहे।बने बनाए कारोबार को यो ही बिखेर देना ठीक नहीं है।बिखेरने में एक क्षण लगता है परन्तु बनाने में वर्षों लगा जाते हैं। देख ही रहे हो जो एक बार गए उनका करबार सब समाप्त हो गया।घर खंडहर हो  गए हैं। फिर भी देखना उन्हें भी एक दिन अपने पूर्वजों की इसी थाती पर आना होगा। कई पीढ़ियों ने अपना जीवन इस भूमि पर बिठाया है। दुख में मा का आंचल में बच्चे को को सुकून मिलता है वहीं सुख अपनी इस भूमि से मिलता है। यह मातृभूमि है ।जो मांगो दे देती है। धीरज की इजा  की भी यही इच्छा थी कि घर बिखरे ना।आज वह होती तो सब संभाल लेती। मेरी दशा तुझे पता है ही।अब स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है। उनकी बात सुनकर मैने तेरे पिताजी के साथ जाना ठीक नहीं समझा। तेरे बाबू बहुत कहते रहे। दो चार साल की तो बात है फिर आकर अपना घर  बसा लेंगे। परन्तु मैने उस समय तेरे ताऊजी का बहाना बनाकर मना कर दिया था। फिर उसी साल वे शहीद हो गए। यही गलती मुझे बार बार कचोटती है कि काश मैने उनकी बात मान ली होती। धीरज दा आज इजा को परलोक सिधार एक साल ही हुआ है किन्तु उसका साथ आज भी अपने आस पास पाता हूं। अभी भी लगता है कि वह ओ परिया कहकर आवाज देती है। अनेक प्रेरक प्रसंग सुना कर दो चार झिड़की भी दे देती है। इतना कहकर प्रकाश फुट फूट कर रोने लगा था।              
   धीरज बड़ा होने के नाते प्रकाश को समझाने की कोशिश तो कर रहा था किन्तु वास्तव में धीरज अन्दर ही अन्दर रो रहा था। वह सोच रहा था वह आंसू भी नहीं बहा सकता। उसे अपना बचपन याद आता है।उसने अपनी चाची को ही अपनी इजा के रूप में पाया था। चाची ने है उसका और प्रकाश का साथ साथ ललन पालन किया था। कभी उसे यह अहसास ही नहीं होने दिया कि उसकी मां नहीं है । उसे याद आ रहा था चाची कहीं से भी घर आती तो उसकी धोती के छोर में कुछ न कुछ जरूर गांठ लगाए होता था। वह उसे खोलकर पहले मुझे खिलाती फिर प्रकाश को। यह उस ममता की मूर्ति का त्याग और वात्सल्य ही था ,जिसकी छत्रछाया में मुझे आज विपरीत परिस्थितियों से लडने में संबल प्रदान करती है। आज पहली बार उसे लगा मा के न होने का क्या दर्द होता है। प्रकाश का बिलख बिलख कर रोना और बन्द पड़े घर की जर्जर हालत देखकर उसे आभास हो रहा था कुछ चू रहा है।                            
 धीरज ,ममता और उनके बच्चे,  पूजा सुरेश और उनके बच्चे और प्रकाश रेनू और उनके बच्चे एक साथ अपने घर में थे।धीरज अपने अतीत से बाहर निकला तो उसने एक लम्बी सांस लेकर कहा, देख प्रकाश आज शहर के चकाचोध कर देने वाले वातावरण से लाख गुना अच्छा इस जर्जर घर का वातावरण प्रतीत हो रहा है। पूरे परिवार का एक साथ होना कितना आनंददायक होता है। शहर में कितनी ही सुविधाएं हो मगर  जीवन का असली आनंद घर गांव में ही आता है।बच्चे भी बाहर खेलने में मस्त हैं।उन्हें किसी प्रकार की टोका टाकी नहीं है।शहर में तो रोज ऐसा मत करो, इधर मत जाओ, यहां बैठो आदि बहुत सी बंदिशे लग जाती हैं।  देख आजाद पंछी की तरह चहक रहे हैं।  बचपन में हम लोग भी ऐसे ही - - - कहते कहते उसका गला रुध गया आवाज नहीं निकाल पा रहा था। तो प्रकाश ने कहा ,हा ददा वो दिन याद करने पर आज सब स्वप्न सा लगता है। हमने आधुनिकता की होड़ में अपना स्वर्ग खुद ही मिटा दिया है।  पूरा का पूरा गांव खाली है।देखकर  बड़ा दुख होता है आज कि पीढ़ी जिन्दगी बनाने जा रही है या उसे मशीन बनाने। मशीन काम तो अच्छा कर सकती है किन्तु उसमें भावनाओं का होना  सम्भव नहीं है।  यह कहकर प्रकाश चुप हो गया और कमरे में सन्नाटा छा गया ।इस सन्नाटे को प्रकाश की बेटी करुणा ने यह कहते तोड़ा की भैया के सिर में चोट लग गई है। सुनते ही सभी उस और दौड़ पड़े जहां मोनू गिरा पड़ा था।उसके सिर पर बड़ा घाव हो गया था। गांव के आस पास कोई अस्पताल है नहीं इसे अभी तुरंत शहर के जाना पड़ेगा। यह कहते हुए प्रकाश ओर धीरज मोनू को लेकर शहर चले गए।उसके सिर से बहुत खून वह चुका था। उसे खून चढ़ाना पड़ा।सप्ताह भर बाद वह ठीक हो गया। तभी प्रकाश ने कहा हमारे गानव आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस  रहे हैं।यही कारण है लगातार गांवों से लोग पलायन कर रहे हैं।हमारी सरकारों को इन बुनियादी सुविधाओं की ओर ध्यान देना चाहिए। शहर की हर सुविधा की आधी सुविधा भी यदि गांव में हो जाए तो पलायन की गति को विराम लगाया जा सकता है।जैसे सरकार ने आज गांव गांव में शराब पहुंचा दी है उसके बदले  यदि सुविधाए पहुंचा दी होती तो गांव की तस्वीर कुछ और ही होती ।शराब ने गांव की शांति को भंग करने के साथ उन्हें पलायन की  त्रासदी की तरफ धकेल दिया है।  प्रकाश की बातों का जवाब धीरज के पास भी नहीं था। एक बार फिर से सन्नाटा छा गया।       

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