संदीप कुमार सिंह 03 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5670 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) धोखों से पाला पड़ा, मजा हुआ नमकीन। अधरों तक ही रह गई,चमचम ख्वाब हसीन।। अधरों तक ही रह गई,सारे नव जज्बात। नित्य सितम से सामना,छूटे सारे नात।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....