Sunny Kumar 21 Dec 2023 कविताएँ समाजिक पिता, father, daddy, papa 18213 0 Hindi :: हिंदी
जब-जब मैं उनको देखता हूं, मैं अपना बचपन उनमें झांकता हूं जब वो कुछ बोलतें कुछ भुलतें हैं ये बुजुर्ग-ये-उम्र है मैं मानता हूं मैं अपना बचपन उनमें झांकता हूं उन्ही का उंगली पकड़ के चलना सीखा हूं उन्ही के सहारे धरा पर कदम रखा हूं उन्ही ने मुझे बोलना सिखाया उन्ही के द्वारा मै पला-बढ़ा हूं अपना बचपन उनके वृद्धावस्था में आंकता हूं मैं अपना बचपन उनमें झांकता हूं जब मैं उनके साथ नहाता-खेलता था स्वंय को आनंदित, प्रसन्नचित्त जानता था आज समय स्वयं को दोहरा रहा है आज पुत्र पिता को नहला रहा है ✍️ SUNNY KUMAR