Sandeep ghoted 19 Jul 2023 कविताएँ समाजिक कुछ तो कीमत समझ poem written by Sandeep ghoted 6151 0 Hindi :: हिंदी
कुछ तो कीमत समझो अभी समय ना गुजरा कुछ तो कीमत समझो डाल दो उन हथियारों को जो उठाए तूने जड़ काटने को कुछ तो कीमत समझो मानव सभ्यता क्या यू मिट जाएगी इस औद्योगीकरण के पीछे कुछ तो कीमत समझो कि औद्योगिकरण की इस प्रक्रिया ने नाश ही कर दिया है ऊपर है नीला आसमां नीचे है नील भरा पेड़ों के उगते ये कोंपले मन को तेरे मोहाते नहीं क्या जो तू और विकास करना चाहे कुछ तो कीमत समझो अपने नई पीढ़ी की चिंता कर उनके हाथ भी कुछ आने दे कुछ तो कीमत समझो आज पेड़ कटेगा तो कल सुनामी में डूब जाएगा अपने अस्तित्व की कुछ तो कीमत समझो संदीप घोटङ
Hi 👋 My name is a Sandeep ghoted I am living in Rajasthan I am becoming of an ias and Ras office...