नीतू सिंह वसुंधरा 03 Oct 2023 कविताएँ देश-प्रेम नीतू सिंह वसुंधरा 17595 0 Hindi :: हिंदी
मानुष के पौरुष का गुणगान मानुष के पौरुष का गुणगान करने आया हूं। मानव ही लौह स्तंभ बना, मानव ही तो प्रहरी है। मानव की इस गाथा से ,मानव जन का कल्याण हुआ। हे मातृभूमि मैं तेरे ऊपर शीश चढ़ाने आया हूं। हे मानुष के वीर प्रसु मैं तुम्हें जगाने आया हूं। मानुष के पौरुष का गुणगान कराने आया हूं। चाहे मानव का संहार हुआ, फिर भी पौरुष का अभिमान रहा। जिसने भी इस भू पर जन्म लिया उसका भी अभिमान रहा। जिसकी रज में लोटपोट कर तूने भू का सिंगार किया। अपनी बलिदानी को देकर मातृभूमि को नवदान दिया। हे मानुष के वीर प्रसू मैं तुम्हें जगाने आया हूं। चाहे बुद्ध, विवेकानंद हो, जिसका भी भू पर अभिमान रहा। उसने इस धरती पर पुण्यात्मा बनकर काम किया। उनकी गाथा को सुनकर, सबने उन पर गर्व किया। हे मानुष के वीर प्रसू मैं तुम्हें जगाने आया हूं। मानुष के पौरुष का गुणगान करने आया हूं। हे भारत के वीर सैनिकों ,तेरे यश का गुणगान किया। तू रनभेरी को सुनकर कभी नहीं रन का अपमान किया। तूने अपने जीवन को, इस भू पर है, कुर्बान किया । तू इस बल बेदी पर चढ़कर युगों युगों तक अपना नाम किया। हे मानुष के वीर प्रसु मैं तुम्हें जगाने आया हूं। मानुष के पौरुष का गुणगान करने आया हूं। तू जब वस्त्र पहन कर सीमा पर तैनात हुए। तू तो एक तिरंगा खातिर जीवन को कुर्बान दिया । तू तो इस धरा पर मातृभूमि का कर्ज़ चुकाने आए थे। हे मानुष के वीर प्रसू में तुम्हें जगाने आया हूं। मानुष के पौरुष का गुणगान करने आया हूं। मानव मन की अभिलाषा है, जीवन जीने की आशा है। मानव ने जब इतिहास रचा उसकी भी अभिलाषा है। मातृभूमि की आंचल में पलकर ,जो भी अपमान किया। वसुंधरा वसुधा से कहती है उसने ही पौरुष का गुणगान किया। हे मानव के वीर प्रसू, मैं तुम्हें जगाने आया हूं। मानव के पौरुष का गुणगान करने आया हूं।