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एक गरीब मजदूर की व्यर्था

Shakuntla Sharma 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक # मजदूर की व्यथा# विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार 17577 0 Hindi :: हिंदी

ईमानदारी सब पर भारी । यह एक कहावत है। पर क्या आज के दौर में एक नेक और ईमानदार इंसान की कोई कीमत है। शायद नही तभी तो कहा है।100 से 90 बेईमान फिर मेरा देश महान । 15 अगस्त हो या 26 जनवरी या किसी महान पुरुष का जनम दिन . सिर्फ एक दिन के लिए ही हमारे दिलो में देश प्रेम की भावना जागती है। और दिन तो हम कभी किसी को याद नही करते है। हमारी आदत बन चुकी है " दुसरो की थाली का घी देखने की " अपने देश की रोटी खाते है। और पराए देश का गुणगान करते है । यह कहां तक उचित है। पहले हम ने यह प्रण लिया था। कि हम स्वदेशी अपनाए . और विदेशी चीजों का बहिष्कार करेगे। लेकिन आज भी बाजारों में चाइना का माल बिकते नजर आता है। अभी कुछ दिनों पहले दिपावली का पर्व मनाया गया था । बहुत ही कम घरों में मिट्टी के दीए जलाए गए थे। अधिकांश लोगो ने अपने घरों को चाइना की लाइटों से रोशन किया था ' अरेरे . भाई अगर विदेशी वस्तुएं का बहिष्कार करो तो पूरा करे। हाथी के दांत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ ओर जैसी बात ना करें। मेरे देश के मजदूर भाई सारा दिन धुप में अपना सामान बेचते हैं । और देश का सारा पैसा बाहर विदेशी मुद्रा में बदल जाता है। यह बहुत शर्म की बात है। इस पहलू पर एक कविता प्रस्तुत है ।
मजदुर के हाथों के खेल खिलौने फुटपाथ पर बिकते है ।
घर में बच्चे भुखे प्यासे अन्न के दाने को भी तरसते हैं  ॥
मजदूरों का शोषण दिन रात उच्च वर्ग के लोग करते है।
मीडिया और नेता सरकार सब अपने गल्ले भरते है ॥
गरीबी की हालत में झोपड़ी में रहन बसर करते है।
फटे पुराने मांगकर बेचारे अपने शरीर रूपी ढांचे को ढकते है ॥
सरकार के झूठे वायदे और कसमों के चक्कर में वोट बेच देते है ।
भुखे भेडियों की नजरो से अपने बहु बेटी और मां की लाज बचाते है ॥
मीडिया इन की मजबुरी का फायदा न्युज बनाकर उठाते है ।
स्कूलों लें दाखिला नही मिल पाता इनके लाल को
फीस नही ये भर पाते है ॥
अनपढ़ बनकर बाल मजदूरी करने के अपराध में फंस जाते है ।
इंसाफ की खातिर दर - दर दरवाजा वकीलों का खटखटाते है ॥
व्यथा नही ये आज की सदियों से जुल्मो की चक्की में फीस जाते है।
कुछ हक की खातिर कोई आवाज उठाते है। झूठे नारे दब कर रहे जाते है।

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