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किसान और खेत

कवि सुनील नायक 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य किसानों पर राजस्थानी भाषा में कविता 8448 0 Hindi :: हिंदी

जेठ रो महिणो लागियो कृषाणा डीकरा उभा खेत सुधारै है, पसीनै सूं लथपथ होयोङा जवानी सफल बणावै है, 
देख तींतर भरणी बादळी ईंद्र पुकारै है ,
काळी कळावण ऊमटी थल-जल करदीया अेक। 

पीळै बादळ खेत पूगजै हळ लेकर हाळिङो रे,
किरण निकळनै सूं पैला हळ जोङै हाळिङो रै,
भातो ले भतवारण आई ले बळधिया रै नीरौ,
उभो किसान खेत मे उडिकै हेत अनूठौ बीरौ।

तीखै तावङियै मे खङो किसान बांठा चांम लगावै है,
मैणत कर कृषाणा रा डीकरा तप-तप खेत कमावै है,
दौन्यू जिणा उभा निनाण करै जद बाजरियौ मुळकावै है,
तारा हुतां थका खेत पुगजै तारा होया जावै है।

मैणत कर कमावै है अर मैणत रा फळ पावै है,
बाजरी सिटा लैवण लागी मोंठ फळिया लागै है,
पीळा-पीळा फूल लाग गिया  बैला चींया लागै है,
दौन्यू जिणा उभा खेत मे देख-देख हरसावै है।

सखळौ धान पकण लागियौ दौन्यू जिणा रूखाळै है,
कळी हांडी टांग खेत मै निजर सूं बचावै है,
अङवौ उभौ बीच बीचाळै बिण सवारथ रूखाळै है,
दौन्यू जिणा बैठ खेत मे चीर काकङी खावै है।

चोटी सुं ऐडी तांई आयो पसीनो जद आयो कातीरौ रै,
छकडा भर-भर धान लिजावै ओ लाडेसर कीरौ रै,
सामी पून उभी कृषाणी छा'लै सूं रळकावै रै,
उत्तर खालङी बांठा लागी जद अ ढिग ढेर लागिया रै।
                         -  कवि सुनील कुमार नायक

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