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पंडित तथा नाई-पंडित तथा नाई की कहानी

संदीप कुमार सिंह 27 Jun 2023 कहानियाँ समाजिक मेरी यह कहानी समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगे। 35422 0 Hindi :: हिंदी

(एक हास्य कहानी)
बहुत पहले की बात है। एक गांव में एक परिवार के यहां सत्य नारायण पूजा का आयोजन रखा गया था। रात में पूजा होनी थी। दूर के दूसरे गांव से पंडित तथा नाई को पूजा की विधि  के लिए बुलाया गया था। यहां उस परिवार यहां पूजा की तैयारी जोरों शोरों से किया जा रहा था। ठीक रात के 07बजे पण्डित जी संग में नाई को लिए पहुंच गए। 08बजे से पूजा होना आरम्भ हुई। पूजा होते_होते रात के 10बज गए। फिर प्रसाद वितरण हुआ। इसी क्रम में पण्डित जी और नाई को खाना भी खिलाया गया। फिर यजमान द्वारा दान_दक्षिणा लेने के उपरांत पण्डित जी एवं नाई अपने घर के लिए प्रस्थान किए। दूसरे गांव में जाते_जाते रात के 12बज गए थे। थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर एक स्कूल आया।
दोनों पण्डित जी तथा नाई स्कूल पर जा कर विश्राम करने को सोचा। ज्यों ही स्कूल पर गया त्यों ही इन दोनों को पण्डित और नाई को तीन_चार बदमाश ने घेर लिया। और उनके पास जो भी दान_दक्षिणा का समान एवं जो नगद था सब बदमाशों ने छीन लिया।
और दोनों को वहां से बदमाशों ने भगा दिया।
दोनों भागकर कुछ और आगे बढ़ा तो एक झोपड़ी दिखाई दिया। पण्डित और नाई सीधे उस झोपड़ी में घुस गया। घुसते ही देखा की एक बुढ़िया चार पाई पर सो रही थी।
बुढ़िया के अलावे उस घर में और कोई भी नहीं थे। पण्डित जी और नाई निर्भीक हो उस घर का मुआयना करने लगा।
तो देखा कि एक चूल्हा बना हुआ था। और ऊपर रस्सी के टंगना पर एक बर्तन रखा हुआ था।
पण्डित ने नाई से कहा सुखो जरा इस बर्तन को उतारो देखते हैं क्या है। नाई ने फटाक से बर्तन उतारा ढक्कन हटाया तो देखता है वह बर्तन दूध से भरा हुआ था।
पण्डित दूध को देखकर बहुत खुश हो गया। और इधर_उधर कुछ और ढूंढने लगा। तो देखा की एक डब्बा में कच्चा चावल रखा हुआ था। फिर वह चीनी ढूंढने लगा तो एक डब्बा में चीनी भी मिल गई। फिर पण्डित सुरेश मिश्र और नाई सुखो ने खीर बनाने का मन बनाया। चूल्हा तो था ही चूल्हा जलाया और उस पर दूध का बर्तन रख दिया, फिर थोड़ी देर बाद चीनी और कुछ देर बाद चावल डाल दिया। आधा घंटा बाद खीर बनकर तैयार हो गई थी। अब दोनो खीर को खाने की तैयारी में था। इससे पहले नाई ने कहा पण्डित जी एक बार बुढ़िया को देख लेते हैं। पंडित जी ने कहा ठीक है देख लो।
बुढ़िया तो वैसे ही सो रही थी। लेकिन बुढ़िया का मुंह खुला हुआ था सोने के दरम्यान में। नाई ने कहा पण्डित जी खाने से पहले एक करछुल इस बुढ़िया को खीर खिला देते हैं। पण्डित जी ने भी कहा हां खिला दो।
नाई गरम खीर को करछूल में लिया और बुढ़िया के खुले मुंह में डाल दिया। अब बुढ़िया का मुंह लगा जलने तो वह जोर से चिल्लाई। तो नाई एक खंभे पर चढ़ गया और पण्डित बुढ़िया के खटिया के नीचे छुप गया। अब बुढ़िया ऊपर वाले को याद कर पुकारी तो नाई ने कहा कि नीचे वाले को क्या कुछ नहीं कहोगी।
बुढ़िया यह सुन और हकबका गई। और जोर_जोर से चिल्लाने लगी। चिल्लाहट सुन आस_पास के लोग सब बुढ़िया यहां आ गए। और पंडित तथा नाई को पकड़ कर बंदी बना लिया सुबह होते ही ग्राम के तमाम लोग बुढ़िया के यहां पहुंच गए। और पण्डित तथा नाई को डांटने लगे। तो पण्डित तथा नाई ने रात की सारी कहानी लोगों को बताया। तब लोगों ने पण्डित तथा नाई को बुढ़िया से गलती मंगवाया। और लोगों ने चेतावनी भी दिया कि अब आइंदा ऐसा काम भूल से भी नहीं करना। पंडित तथा नाई सभी से अपनी गलती मांगकर घर की और चल दिया।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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