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आखिरी खत( शेष भाग)

Uday singh kushwah 30 Mar 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत Google/yahoo/bing 82928 0 Hindi :: हिंदी

    अलग -अलग तरहें की जरीन नक्काशी कढे़ वर्तन ,सिंगारदान खुद खाला के लड़के ने बनाई!तरह-तरह के रंगबिरंगें कांच लगे,महेरी,चौकी,फूलदान देने के लिए लाए जिसका ढक्कन खोलते ही सतरंगी आवाज गूंजने लगती!बारात आज शाम को आना थी! 
        और सलमा साज और सामान के साथ नदारद थी!घर में सबसे पहले जरीना बेगम को मालुम चला!सहेलियों के यहां ,आसपडौस,सब जगह ढुढा़ पर सलमा का कोई अतापता नही था!हार थक कर मुल्ला हजरत बस अड्डे और रेलवेस्टेशन पर भी देख आये पर मसला सिफर था दरवाजे पर बारात खडी़ थीं!सलमा की कोई खैर खबर नही थी! दरवाजे से बारात उल्टे पांव वापिस गई !उस वक्त मुल्ला हजरत को काटे तो खून नहीं ऐसी हालत हो गयी! मुल्ला हजरत ने सब बिरादरी के सामने लड़के के बाप के कदमों में अपनी पगडी रख दी! उस रोज से मुल्ला हजरत अपने ही आप में घुटते रहते और उस मनहूस  दिन को जब तब याद करते और सलमा की अम्मी से कह रख्खा है कि अब सलमा से हमारा कोई वास्ता नही रहा! वह ,जब यह सब सोचती तो कलेजा फटने लगता! आप ही आप तिलमिलाने कलपने के बाद जरीना बेगम  गुसलखाने में घुस जातीं और रोती! ;यह जिंदगी भी कैसी जिंदगी है वह सोचती अभी सब कुछ है,पल मे अभी कुछ भी नही है!
   कल की ही बात मालुम होती है!इस घर में कितनी रौनक थी! दालान में आराम कुर्सियां पडी़ थीं! सहन में मोडे़ विछे हैं!मुशायरे हो रहे हैं!कव्वाल गा रहा है! वह ठंडी आहें भरती और    रह जाती ! 
    अब वह सारा दिन कुरान शरीफ ही पडा़ करती! चाहे वह जिंदा रहे  या मर जाए! और उन्होने जरीना को भी कसम दे दी है",अगर तू जीते जी उसका मुंह देखेगी तो मेरा मरा मुंह देखें! उस बात को बीतें बहुत वक़्त गुजर गया! पर दिल उस घाव को  भर नहीं पाया! 
     एक रोज इमली के दरख्त के नीचे वैठी जरीना स्वैटर बुन रही थी मुल्ला हजरत के लिए बुन रही थी! लाल इमली की सुनहरी ऊन से सुन्दर सुन्दर वेल बूटे उकेर रही थी;अब सर्दियां आने वाली है! इसलिए स्वैटर मुल्ला हजरत के लिए बुना जा रहा था!
        उसी वक़्त सलमा की  स्कूल वाली सहेली नगमा ने सहन का दरवाजा खोल भीतर आकर -"सलामालेकुम आंटी कहकर,"बिछे गलीचे पर वैठ गयी!और मुल्ला हजरत के बारे में पूछा ,जो किसी काम से घर से नदारद थे,वो फिर इत्मिनान से वैठ गई! जरीना ने स्वैटर बुनती उंगलिओं को रोककर कहा-"माफ कीजिए ,मैंने आपको पहचाना नहीं! "नगमा ने मुस्कराते हुए,थोडे़ दवे अलफाजों में कहा-" मैं सलमा की स्कूल वाली सहेली नगमा हूँ! "और उसने अपने कुर्ते की जेब से मुडाझ तुडा खत करीना के सामने रख दिया -" यह मेरे घर के पते पर आया था ,उसनेखत आपको...!"और गहरी सांस छोडी़! करीना मुंह से कुछ फुस्फुसाई,-" करमजली ने बिरादरी में हमैं कहीं का नहीं छोडा़,कहदेती तो क्या हम उसका निकाह उसकी रजामंदी से नही करवा देते?" फिर कुछ रुककर-"अब अब्बा भी गये ,और अम्मी भी!वैहया ने इतना गैर समझ रख्खा था! हमें एक बार कहती तो सही,अपने दिल की बात,पता नही    उसके दिल मे क्या चल रहा था!"
      " उसकी सहेली ने भी तो हम से कुछ नही कहा ,क्या उसे सलमा के बारे में इतना भी मालुम न था;या हमें गैर समझती थी!"
करीना ने माथे पर हाथ ठोककर,अपने नसीब को कोसा !मुडे़-तुडे़ वही खत आज फिर से निकालकर उसने एक बार देखें और उसमें से एक आखरी खत को अपने कलेजे से लगाया! खत के बिखरे हरुफ उसे मोतियों से दिखें!एक एक कर सब फिर आंखों से ओझल होते दिखे,विल्कुल सलमा की तरह!आखरी खत में उसने जिक्र किया था उस जगह का,अपने शौहर का और उसके मां बाप का जिनकी वाह वाही करतें सलमा अघाती तक न थी और ऐसा लगता जैसे उसे जमाने भर की खुशियां यूं ही चलकर सलमा की झोली में समा गयीं हैं !
          हां ,इन खुशियों को अचानक नही कहा जा सकता है! इन्होने तो जमाने भर की र्कुबानियां लीं हैं! क ई रिश्ते तोड़कर,एक नया जहा़न बनाया है,अपने लिए! उसकी कीमत मैनें और सलमा के अब्बू ने अपना सब कुछ देकर अदा की है!  दिलो के टूटने का दर्द सहा है और अब भी सह रहें हैं;इस दर्द का खामियाजा किसी न किसी को तो भुगतना पडेगा ही! चाहे सलमा उठाती अपनी मोहब्बत से बिछुड़कर या हम! बिना कीमत चुकाए इस वेनुरब्बत जमाने में कुछ भी मिलता है भला!हर एक खुशी,हर एक अचछाई की कीमत पहले से ही मुर्करर है,बस उसके अदा करने का वक्त अलग-अलग हैं!
उस आखरी खत की इबारत इस प्रकार थी-
अम्मी जान सलामालेकुम,
                  मैं खैरियत से हूं, और आप भी अल्लाह के फजलोकरम से खुश और तन्दुरस्त होंगें ;आगे खबर यह है कि मैं अपने शौहर के साथ बहुत खुश हूँ ! आप मरी फिक्र मत करना ! अब्बू फिकरमंद होंगें उन्हें समझा बुझा कर खुश रखने की कोशिश करना!अब खत भी नहीं भेंज पाऊगीं,नगमा का निकाह होना तय हो गया है;इसे आखरी खत समझना! अल्लाह हाफिज!
                                             सलमा बेगम,
                               मोहब्बत विला,कुरेशी मौहल्ला
                                लश्कर, ग्वालियर!
इति!*             *                *            *           *
                              -यू.एस.बरी

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