संदीप कुमार सिंह 28 Jul 2023 ग़ज़ल प्यार-महोब्बत मेरी यह गज़ल समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 9853 0 Hindi :: हिंदी
(गजल छंद01) चलते चलते बोझिल होने पर ठहराव ही है जरूरी, रहते रहते एक ही छत के नीचे बदलाव ही है जरूरी। संसार में गम बहुत हैं इसलिए प्यार निभाना ही है ज़रूरी, यहां कुछ भी अटल नहीं है इसलिए बदलाव ही है जरूरी। जन्म _मृत्यु का खेल भी बदलाव की ही है जरूरी, बीज से पौधा फिर फूल_फल देकर खत्म होना बदलाव की ही है जरुरी। मौसम के रंग भी बदलते रहते हैं यह भी बदलाव की ही है जरूरी, कली से फूल से मुरझाना यह भी बदलाव की ही है जरूरी। समय का बदलना सत्य है यह भी बदलाव की ही है जरूरी, प्यार के किरणों को बिखेरना यह भी बदलाव की ही है जरूरी। भोजन हर दिन अलग_अलग करना यह भी बदलाव की ही है जरूरी, प्यार में कभी कभी फसाना हो जाता है यह भी बदलाव की ही है जरूरी। बेहतर से बेहतरीन बनाए जाते हैं यह भी बदलाव की ही है जरूरी, आदि काल से लेकर आधुनिक मानव समाज बदलाव की ही है जरूरी। हर हाल में किसी में भी सुन्दर बनाने की गुंजाइश रहती है यह भी बदलाव की ही है जरूरी, चांद पर पहुंचने का खेल जारी है यह भी बदलाव की ही है जरूरी। (गज़ल छंद02) आज शाम नरम हवाए हैं, बेरुखी म अदा जगाए हैं। लोग आज मनों रगों में रख, प्यार सिर्फ़ मधु आजमाए हैं। खाल बात की मत निकालो जी, सत्य बात जहां महकाए हैं। चाल हाल सभी चले सरपट, समय ही यह सब सिखाए हैं। राज को अब राज रहने दो, और फूल सदा खिलाए हैं। चांदनी बन रात आई है, बोल प्यार नई सजाए हैं। चांद को जब से व देखी है, बैठ जान समा लगाए हैं। नाज रोज करें यहां हम सब, नज़र नज़र संग मिलाए हैं। अब रहे वह साथ संदीप सु, दिल लगा कर यार बिठाए हैं। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....