संदीप कुमार सिंह 06 May 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4092 0 Hindi :: हिंदी
मन वीणा के तार है, रखूं मध्य में साज। गीत प्रेम का मैं सुनूं,कायम रहता राज।। मन वीणा के तार सा, उड़े फिरे यह तेज। रखता हूं सम्हाल कर,खुशबू मय हो सेज।। मन वीणा के तार है,अद्भुत इनके चाल। मन से राजकुमार हूं, रहे कांत में भाल।। मन वीणा के तार है,वश में रखना काम। करता इसे निराश मत,फिर खिलते हैं नाम।। मन वीणा के तार है, मिले सदा संगीत। जीने का हो जब हुनर,रहता सदा अजीत।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा) बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....