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जाति जनगणना-लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति

virendra kumar dewangan 16 Oct 2023 आलेख समाजिक Sodial 10466 0 Hindi :: हिंदी

लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति से उपजी हुई बिहार व उप्र की पाटियां-राजद, जदयू और सपा की मांग है कि देश में जातीय गनगणना होनी चाहिए, ताकि पता चले कि कौन-सी कितनी जाति देश-प्रदेश में निवासरत हैं। तदनुरूप उनको आरक्षण प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाया जा सके। बिहार में यही पार्टियां कांग्रेस के सहयोग से सत्तासीन हैं और इनका दावा है कि उन्होंने बिहार में जातिवार आंकड़े जुटा लिए हैं। 

दरअसल, इन क्षेत्रीय पार्टिंयों की राजनीतिक जमीन इसी पर टिकी हुई है और वे बरसों से जातिवादी राजनीति करके बिहार व उप्र में कांग्रेस को उपदस्थ करने में और उसे हाशिये पर ढकेलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं।

इन क्षेत्रीय दलों का अपना-अपना सियासी स्वार्थ समझ में आता है, लेकिन इस देश का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी इन्ही दलों के नक्शेकदम पर चलने के लिए आमादा नजर आ रहा है, तो विचार कौंधता है कि उसने 60 साल सत्ता में रहने के बावजूद जातिगत गणना क्यों नहीं करवाया?

यही नहीं, जब 1989 में वीपी सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की योजना बनाई, तब कांग्रेस ने पुरजोर विरोध किया। फलस्वरूप देश सवर्ण विरोध की आग में जल उठा। तब सवर्ण जातियों के द्वारा देशभर में भारी उत्पात मचाया गया और कांग्रेस फखत राजनीतिक रोटियां सेकती रही।

यहां तक कि 2011 में जब मनमोहन सिंह की सरकार ने उक्त सहयोगी दलों के भारी दबाव में जाति आधारित जनगणना कराई, तब उसने उस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया?

कर्नाटक राज्य में कांग्रेस अपने शासनकाल में जातिगत गणना करवा चुका है, पर उसके आंकड़े जारी नहीं किया। आखिर क्यों?

इसी तरह महिला आरक्षण बिल को मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में जब कांग्रेस ने राज्यसभा में पारित करवाया और लोकसभा में अपने सहयोगियों के जबरदस्त विरोध के चलते उसे पेश ही नहीं किया, तब उसने उसमें ओबीसी महिलाओं के आरक्षण के मुद्दे को दरकिनार कर दिया था।

पर, जब एनडीए की सरकार ने गत माह महिला आरक्षण बिल दोनों सदनों में पास करवाया, तब वो ओबीसी महिला आरक्षण को लेकर मुखर होते हुए राजनीति करने लगे।

कांग्रेस का यह दोहरा रवैया उसी के लिए मुसीबत बननेवाला है, जिसकी गंभीरता को वह जितनी जल्दी समझ ले, उतना उनके राजनीतिक सेहत के लिए अच्छा है। कारण कि देश की जनता जागरूक हो चुकी है और वो दोगलापन कतई बर्दाश्त नहीं करती।

यह भी सच है कि 1951 से 2011 तक आजाद भारत की हर जनगणना में अजा व अजजा का ही आंकड़ा जारी किया जाता रहा, दूसरी जातियों का नहीं। हालांकि गुलाम भारत की जनगणना 1931 में जातिवार आंकड़े जारी किए गए थे, लेकिन वर्तमान एनडीए की सरकार का रुख स्पष्ट है कि जनगणना मे ंएससी और एसटी के अलावा बाकी जातियों की गणना न की जाए।

एनडीए सरकार का तर्क है कि समाज को जाति के आधार पर बांटे बिना भी सामाजिक न्याय किया जा सकता है। उनकी यह भी दलील है कि देश में गरीब ही सबसे बड़ी जाति और आबादी है।

इस पर अभिमत यही कि देश के प्रत्येक नागरिक को गनगणना के आंकड़ों के आधार पर जानने का हक है कि देश में कितने लोग किस धर्म को माननेवाले हैं। यहां कितनी जातियां हैं। वे किस राज्य व जिले में निवासरत हैं। उनका सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक स्तर कैसा है? फिर चाहे वे एससी, एसटी या ओबीसी वर्ग के ही क्यों न हो? इससे योजनाएं बनाने, योजनाओं का कार्यान्वयन करने और उनका स्तर सुधारने में मदद मिल सकती है। 

साथ ही यह भी जाना जा सकता है कि जिन लोगों ने अभी तक आरक्षण का लाभ लिया है, उनके जीवनस्तर में कितना परिवर्तन आया है? समय आ गया है कि अब सब-कुछ खुली किताब की तरह होनी चाहिए; क्योंकि देश जाग चुका है, उसे अब ज्यादा समय तक अंधेरे में नहीं रखा जा सकता।
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