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चिरागों कि रौशनी - दिप्त्त दीप दान का अभिमान नम करी

Amit Kumar prasad 14 Nov 2023 कविताएँ समाजिक है! विद्या यह ज्ञान कि‌, स्म प्रकाश‌‌ प्रभात्त! ऊज्वल, निश्चल और शिष्टत्ता का करत्ती दीप संचार!! This poem is on the base of aknowledgement and conscienesess of morality. During this poem has described the possitivity goes to do achive from native duty. And base of this poem is " Lightship ", By this poem Again, Given a inspiration from the " Glim ", And in this poem comes lot of lot way to develop of morality and concern and, After, To include all the conclusion of concept, Name of this poem prepares, " The glim of Lightships".And with it is a very native of this poem that " Catch is to be stress and get is to be wait" after,All of the description is it poem's thiem. And,Now should take inspiration and communicate inspiration to it, Most of greet to all of my Literature's reader and complete with it" Happy The fastival of Lightships". Jai Hind. 🌺 9447 0 Hindi :: हिंदी

दिप्त्त दीप दान का, 
अभिमान नम करी! 
स्वेच्छ, ऊज्वला करी, 
चिरागों कि रौशनी!! 
      ‌‌‌‌       विकाश का पवन बहे, 
             अवकाश वक्त से! 
             दिप्त्त - दिप्त्त निर्झर रहे, 
      ‌       सम्पदा, आनन्दमय!! 
कह रही है, शाम से, 
सुबह कि जिन्दगी! 
हिन्द के चरण त्तले‌, 
चिरागों कि रौशनी!! 
‌               है! हिन्द के धरा कि, यह, 
               पावन कथा - कथित्त,
              ‌ कहीं, पे भय अंधकार‌ का, 
               कहीं, प्रकाश‌‌ भर रही.. 
               चिरागों कि रौशनी!! 
है अह्म को‌ नम किया, 
भया, विष्म, विल्य! 
अजय, अजर, धरा, धरे, 
क्या.. चिरागों कि रौशनी!! 
    ‌‌‌‌‌‌‌‌          त्तरंग गत्ती त्त्म‌, ल्य मधुर, 
       ‌‌‌‌‌       माधुर्य रमणिका! 
‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ ‌‌‌             ऊज्वल प्रभा कि‌‌ शांख‌ से, 
              स्वच्छ हर दिशा!! 
दिशा कि‌ दिव्य प्रस्त्त्ती, 
प्रदर्श, पथ‌ करी! 
ज्यों सार्थ पथ‌ है‌, धारत्ती, 
चिरागों कि रौशनी!! 
                बन‌ सार्थ‌‌ अंधकार‌ में, 
           ‌‌‌‌     प्रकाश‌‌ ज्ञान का! 
 ‌‌‌‌‌‌‌‌               ज्यों ल्य‌ धरा‌ ऊज्वल करे, 
‌‌‌‌‌‌                स्वेच्छा सम्मान सा!! 
अधरों में ल्य को वारत्ता,
स्म ज्ञान सार्थी!! 
कल्याण ज्ञान महार्थी, 
बन‌ रथ को‌ धारत्ती!! 
                 है! धारत्ती, है‌! ऊज्वला, 
             ‌‌‌‌‌    प्रकाश‌ ज्ञान स्म! 
‌‌‌‌‌                 जिस ज्ञान‌‌ के प्रभा त्तले, 
                 होत्ता है‌, त्त्म खत्म!! 
प्रभा कि‌ भोर शोर ज्यों, 
रज़नी के पश्च करें! 
त्यों दिप‌ जगमगा रहें, 
गुण - ज्ञान, हरे - हरे!! 
                 हर - हर के अंधकार को, 
                ‌‌‌ ऊज्वल दिशा करें! 
                 दिप्त्ती के दिप्त्त धार से, 
                 होत्ती है‌, ज्योत्तिर्मय!! 
है! राह अंधकार में, 
दिपों कि रौशनी! 
स्म ज्ञान‌‌ संखनाद है, 
प्रात्त: के‌ किरण सी!! 
          ‌        किरणों कि‌ दिव्य मेखला, 
‌‌‌‌‌‌          ‌‌‌        कि वाद‌ ज्ञान है! 
      ‌            साहित्य कि‌ इस श्रृंखला, 
       ‌‌‌‌‌‌‌           का संवाद ज्ञान है!! 
हर शै‌ अचल प्रबुद्धत्ता, 
से आबाद ज्ञान है! 
साहित्य कि‌ इस सृज़ना, 
के‌ बाद‌ ज्ञान है!! 
                   है! मार्ग को प्रस्सत्त करे, 
      ‌‌‌‌             आधार ज्ञान का! 
         ‌‌‌‌‌‌‌‌  ‌‌‌‌        स्म ज्ञान किरण पुंज़ सी, 
                   आज़ाद ज्ञान है!! 
कर ज्ञान को नमन कलम, 
चाहें करी प्रबल! 
चाहों से राह होत्ता सहज, 
गाथा है‌, यह अचल!! 
  ‌           ‌‌  ‌    अचल - विचल‌ को धार कर, 
                   साहित्य रस भरें! 
                   दिपों कि दिप्त्त‌ रौशनी, 
                   त्मस को त्यों हरे!! 
हरे - हरे‌ , हरे - भरे, 
दिशा और दृश्य को, 
स्म लिन‌ जग रमण करें, 
ऊज्वला, आन्नद को!! 
                   आन्नद का‌ ये छन्द है, 
                   सुधा‌ कि‌ प्रार्थी! 
                  ‌ चर‌,अचर‌ निर्झर करें, 
                   चिरागों कि रौशनी, हां! 
                   चिरागों कि रौशनी, ह्म! 
                   चिरागों कि रौशनी!! 
चिराग दिप्त्त दिव्य सा, 
और  ल्य‌, स्म त्तेज़‌‌ है! 
पावन धरा‌ प्रबुद्ध गगन, 
तम्स‌ विल्य‌ करें!! 
    ‌‌‌‌‌‌               करें हो‌ अग्र बखान‌ ज्ञान, 
                   धरा‌ कि‌ ऊज्वला! 
                   कलम ने‌ है‌, करी नुत्तन सृज़न, 
                   साहित्यों कि‌ श्रृंखला!! 
श्रृंखला कि‌ धार‌ वार‌ कर, 
सुज़ला‌ सफ़ल भरे! 
प्रकाश‌‌, ज्योतिर्म्य रहें, 
हर डगर विजय करें!! 
                    डगर - डगर को‌ दिव्य कर, 
           ‌ ‌‌‌‌        कलम सृज़न किया! 
                    साहित्य छंद जयकारत्ती, 
                    चिरागों कि‌ रौशनी!! 
पथ - पथ‌ पे ज्ञान त्तेज़‌ सा, 
प्रकाश अमन कि! 
संखनाद दिप्त्त ज्ञान का, 
चिरागों कि रौशनी! 
                 हां! चिरागों कि रौशनी, 
                 ह्म! चिरागों कि रौशनी! 
                 हां! चिरागों कि रौशनी, 
                 ह्म! चिरागों कि रौशनी!! 

रचनाकार  : अमित्त कुमार प्रशाद.......🖌 
Creater : Amit Kumar Prasad....📚

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