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टी. वी. ओर साहब-आँखें चमक उठती हैं

Pradeep singh " gwalya " 11 Aug 2023 कविताएँ अन्य टी. वी. और साहब : एक कटाक्ष by pradeep singh ग्वल्या 7891 0 Hindi :: हिंदी


हंसूं, रोऊं या चिल्लाऊं
यह भाव ही मन से जाता है
जब कोई साहब टी.वी. पर आता है।

आँखें चमक उठती हैं
मन शांति की ओर जाना शुरू होता ही है
पर फिर उथल पुथल शुरू होती है
जब कोई साहब टी. वी.पर आता है।


कहता है ; यह वक्त हर वक्त जैसा नहीं
इस वक्त कुछ नया नियम शख्त होगा
पर फिर पुराने से बद्तर होता है
ज्यों ही कोई साहब टी.वी. से जाता है।

फिर जब बद्तर होता है
कमवक्त साहब फिर टी.वी. पर होता है
दुखड़े सुनाता, सख्त हिदायत देता,
और कुछ को गरियाता है
जब भी साहब टी.वी. पर आता है।

पर अब साहब टी.वी. पर कम ही आता है
सुना है वही भ्रष्टियों से मिलाता है
ओ हो! क्या हुआ, क्या करें
बस विद्यार्थी देखते रह जाता है
फिर भी साहब बेशर्मों की तरह टी.वी. पर आता है।


अब क्या ,वही पुराना टी.वी.
वही पुराना विद्यार्थी,वही दौर,वही संघर्ष
बस टी.वी.पर दृश्य अलग होता है
और साहब भी बदला हुआ होता है।।
                       
                       प्रदीप सिंह "ग्वल्या" ✍️

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