संदीप कुमार सिंह 01 May 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4742 0 Hindi :: हिंदी
आज व्यक्ति और समाज दु:ख के घनघोर अंधेरों में है । कहीं दु:ष्कर्म है तो कहीं लूटपाट है । कहीं हिंसा है तो कहीं मान _अपमान है । कहीं जात _ पात की लड़ाई तो कहीं भेदभाव की लड़ाई है । और यह समाज में, सर्वथा निंदनीय है। आखिर वजह क्या है ? सोचना और समझना पड़ेगा । एक तरफ समाज है, एक तरफ सरकार है । 12 घंटा दिन है तो 12 घंटा रात है । कहीं भूख है तो कहीं प्यास है । कहीं बहुत ज्यादा है, कहीं बहुत कम है । लगता है अभी भि, हमलोग दिल से , एक _ दूसरे से दूर हैं । ऊपर से करोना वायरस का प्रहार है । तो जरूरत है , समस्याओं के जड़ में जाने का । भावनाओं को समझना और समझाने का काम करना है । कुछ हम सम्हले_कुछ तुम सम्हलो, मैं तुम्हें अपनी बात बताऊं, तुम मुझे अपनी बात बताओ । हम जनता हैं, जनता से सरकार है । सरकार जनता के कल्याणार्थ है । जनता भी उन्हें, आंखों का तारा समझते हैं । शाषण , प्रशासन के हाथों में है । शाषण प्रणाली तुम्हारी अगर, नहीं है बेहतर तो करो इसे और बेहतर और बेहतरीन । आप चौकीदार हो, हम आपके भरोसे हैं । हमारी रक्षा करना ही आपका लक्ष्य है । बड़े ही उत्साहित होकर, हम लेते हैं उस , महामतदान पर्व में हिस्सा और आपको अपना बेशकिमती वोट दान देकर जिताते हैं । जब हमलोग अपने कर्म से पीछे नहीं हटा तो आप कैसे अपने कर्म से पीछे हट सकते हो ? मत करो अन्याय, अपने कर्म_फर्ज_धर्म से । करो वफादारी अपने कामों से, एक सभ्य और सुन्दर , समाज का निर्माण होने दो । एक सुखी और सुखद, भविष्य का निर्माण होने दो । प्रगति और विकास का, अद्वितीय दुनिया सजने दो । आओ मिलकर ये वादा करें । अपराध और अपराधी का समूल नष्ट करूं । आओ मानव बनें, मानव हूं, एक _ दूसरे का रक्षा करूं । मनुष्य ज्ञान के तंतु के सहारे, हम ज्ञान और कर्म से प्रकाशमान मार्ग की और बढूं और मनुष्य बनूं । (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....