Kirti singh 15 May 2023 कविताएँ समाजिक वक्त की बेरहमी मान भी ले जाती है सम्मान भी। 7802 0 Hindi :: हिंदी
वक्त की बेरहमी मान भी ले जाती है सम्मान भी वक्त की बेरहमी ना सोने देती है ना जागने वक्त की बेरहमी हवाओं में घुटन बनकर समा जाती है। वक्त की बेरहमी ना जिंदगी देती है ना मौत वक्त की बेरहमी बिल्कुल अकेला तन्हा बनाकर भीड़ में अकेला छोड़ जाती है, वक्त की बेरहमी आस्था और विश्वास को तोड़ हर शब्द को वक्त के समुंदर में डुबो जाती है ,वक्त की बेरहमी की दास्तां मै लिखती रहीं पन्नों पर इतने में किसी ने आकर मुझसे कहा वक्त की अग्नि मनुष्य को जलाकर सोना बना जाती है। तो मैंने भी यह लिख दिया सोना को भी अग्नि की तेज तपिश जलाकर राख बना जाती है। Kirti singh