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गुलामी

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक गुलामी 43040 0 Hindi :: हिंदी

सच्ची है, नहीं तकिया- कलाम।
गुलामी, तुझे सलाम।
कोई धर्म का, कोई कर्म का, कोई शर्म का गुलाम है।
कोई आदत का, कोई मत का, कोई हरम का गुलाम है।
कोई दाम का, कोई नाम का, कोई चर्म का गुलाम है।
कोई हां का, कोई ना का, कोई मर्म का गुलाम है।
कोई- कोई तो, है तिलाम।
गुलामी, तुझे सलाम।
कोई तन का, कोई मन का, कोई धन का गुलाम है।
कोई भ्रांति का, कोई क्रांति का, कोई अमन का गुलाम है।
कोई प्रिया का, कोई चर्या का, कोई रहन-सहन का गुलाम है।
कोई मित्र का, कोई चरित्र का, कोई दुश्मन का गुलाम है।
सभी पर गुलामी की, है लगाम।
गुलामी, तुझे सलाम।
कोई मद का, कोई ज़िद का, कोई क़द का गुलाम है।
कोई खुद का, कोई सबका, कोई हद का गुलाम है।
कोई रस का, कोई कश का, कोई पद का गुलाम है।
कोई पहुंच का, कोई सोच का, कोई दरद का गुलाम है।
संतोष गुलाम शायरी का, हर याम।
गुलामी, तुझे सलाम।
सच्ची है, नहीं तकिया कलाम।
गुलामी, तुझे सलाम।

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