संदीप कुमार सिंह 08 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 8099 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_कुंडलिया छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" मनमानी किसकी चली,नहीं किसी का यार। ऐसों को हो हाल यह,सदा मिली है हार।। सदा मिली है हार,हार कर के वह बैठे। नीरस दिवस गुजार,स्वयं में ही वह ऐंठे।। कहते कवि संदीप,याद हमको कुर्बानी। आजादी के वीर,और रोके मनमानी।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....