Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 6362 0 Hindi :: हिंदी
⭐ कविता = ( परदेश ) कैसा ये परिवेश हुआ ! घर ही मेरा परदेश हुआ !! एक ही छत के नीचे ! जैसे पूरा देश हुआ !! घर के हैं जो घरवाले ! आज हुए वो बाहरवाले !! बाहरवालों का घर में ! शुरू अब प्रवेश हुआ !! कैसा ये परिवेश हुआ ! घर ही मेरा परदेश हुआ !! घर होता था घरवालों से ! घर हुआ अब दीवारों से !! सीमित अब दीवारों तक ! सबका अब प्यार हुआ !! अपनी-अपनी दुनियाँ में ! हर कोई मशग़ूल हुआ !! घर में जब खींची दीवारें ! अपना कोसों मील हुआ !! कैसा ये परिवेश हुआ ! घर ही मेरा परदेश हुआ !! दिलों में जब पड़ी दरारें ! दुश्मन भी क़रीब हुआ !! दीवारों के कानों से ! घर खुली किताब हुआ !! राजनीति का शुरू है दंगल ! इस घर में कभी था मंगल !! मंगल में अब है दंगल ! घर अब संसद हॉल हुआ !! कैसा ये परिवेश हुआ ! घर ही मेरा परदेश हुआ !! उन रिश्तों में थी शक्कर ! घर जो कभी थे छप्पर !! आज रग-रग में देखो ! नफ़रत का ज़हर हुआ !! रंगमंच की दुनियाँ में ! रिश्ता भी किरदार हुआ !! अभिनय की इस मंडी में ! रिश्ता अब बाज़ार हुआ !! कैसा ये परिवेश हुआ ! घर ही मेरा परदेश हुआ !! विपिन बंसल