Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य इश्क़बाज़ 15291 0 Hindi :: हिंदी
इश्क़बाज़ सुना हैं तू मुझ पे मरने लगी हैं मेरे ही नाम के माला जपने लगी ये हकीक़त हैं या कोई फ़साना तो नहीं सुना आज कल खूब तू सवरने लगी हैं जब से जाना कि तुझे भी इश्क़ हैं मुझ से सच कहूं तो मैं भि बहकने लगा हूँ तेरे ही रंग में अब मैं भी रंगने लगा हूँ तुझे खुद में अनुभव करने लगा हूँ जिसको इश्क़ पे ऐतवार नहीं मुहब्बत से प्यार नहीं सुना हैं बो इश्क़बाज़ बन गए