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दहेज-सबसे बड़ी दहेज तो बेटी होती हैं

कुमार किशन कीर्ति 08 Aug 2023 कहानियाँ समाजिक दहेज,मेहमान। 29487 0 Hindi :: हिंदी

विनायक बाबू के घर शादी की तैयारी बड़े ही धूमधाम से हो रही थी।धीरे_धीरे मेहमान आ रहे थे। कई प्रकार के उपहार से कमरा भरा दिखाई दे रहा था,लेकिन इस खुशी के माहौल में कभी_कभी विनायक बाबू की आंखें भर आती थी,और ऐसा हो भी क्यों ना?
एकलौती पुत्री है सरोज,विनायक बाबू ने बड़े ही लाड प्यार से पाला है उसको।पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद फिर दुबारा शादी नहीं की,और सरोज को माता_पिता दोनों का प्यार दिया था।
पेशे से हाई स्कूल के अध्यापक होने के वाबजूद भी उन्होंने सरोज को शिक्षा और संस्कार से संवारा था।
लेकिन,अब उनकी पुत्री उनसे दूर चली जाएगी फिर पंछियों सी चहकने वाली,और कलियों सी मुस्कुराने वाली सरोज को देखने के लिए उनको भी वक्त निकालना पड़ेगा।यह आंगन,यह घर सब सुना_सुना दिखाई देगा।यह कैसी रिवाज है!यह कैसी दुनिया है!जिसको पाल पोसाकर बड़ा किया,उसे ही पराए के घर भेजना पड़ता है।
ये सब सोचते ही उनकी आंखें भर आती थी।हालांकि,शादी अगले सप्ताह थी।फिर भी विनायक बाबू नहीं चाहते थे की बारातियों को किसी भी प्रकार की कमी महसूस हो।
इसलिए,उन्होंने सभी चीज की व्यवस्था कर दी थी।खाना बनाने वाले रसोइयों को सख्त हिदायतें दी गई थी। खाना में कोई गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए,लेकिन होनी को कौन टाल सकता है?
यह किसने सोचा था की खुशनुमा माहौल में भी दुःख की बदली घिर आएगी।फिर हंसते _मुस्कुराते चेहरे किसी कली की भांति सुख जाएंगे।
चुकी,खाना बनाने के बाद रसोइया अपने घर चले गए। मेहमानों को खाते_पीते रात को एक बज गए।इसके बाद सभी मेहमान अपनी_अपनी सुविधानुसार बिस्तर पर सोने चले गए।
विनायक बाबू को भी नींद आ रही थी।दिन भर की थकावट से उनका बदन मानो जैसे टूट रहा था।इसलिए,वे भी अपने कमरे में सोने चले गए।
इसके बाद ठीक दो घंटे विनायक बाबू को प्यास लगी।वे पानी पीने के लिए आंगन में गए,लेकिन यह क्या?
आंगन के पास वाले कमरे में धुआं और आग की तेज रौशनी दिखाई दे रहा था,मानो जैसे आग लग गई हो।यह देखते ही उनको धक्का महसूस हुआ।फिर उन्होंने जल्दी से उस कमरे का दरवाजा खोला।फिर अंदर का दृश्य....बहुत ही खौफनाक था।उसे देखकर विनायक बाबू के मुंह से बहुत ही तेज चीख निकली"आग.....आग आग लग गई है।और,वे बेहोश होकर गिर पड़े।
सुबह जब उनकी होश आया,तो उन्होंने अपनी बेटी सरोज,कुछ रिश्तेदार और गांव के मुखिया बैठे हुए थे।
उन सभी को देखकर विनायक बाबू की आखों से कुछ बूंदे टपक पड़े।यह देखकर सरोज बोली"यह क्या पिताजी,आप रो रहे है?जो हुआ है,उसमे किसी का कोई दोष नहीं है।"
लेकिन,विनायक बाबू कुछ नहीं बोले।तब, उन्हें चुप देखकर मुखिया बोले"विनायक जी,सरोज बिटिया की शादी में अब कुछ ही दिन शेष हैं,और  यह बड़ी घटना हो गई है।फिर भी आप परेशान मत होइए।सारा गांव आपके साथ हैं।सरोज बिटिया भी तो हमारी बेटी के समान ही है,और बेटी चाहे किसी की भी हो।वह तो गांव की प्रतिष्ठा होती है। अतः, हम सब के पास जितनी भी रुपए_पैसे हैं।सब लगाकर सरोज की शादी करेंगे।आपकी जितनी भी संपति का नुकसान हुआ है, बस....आप उसे भूल जाइए।"
हालांकि,मुखिया की बातों का कुछ असर विनायक बाबू पर हुआ।इसलिए,वे बिस्तर से उठ गए।लेकिन....अंदर ही अंदर सरोज की शादी की चिंता उन्हें खाई जा रही थी।
उसी दिन शाम को वह चुपचाप अपने कमरे में बैठे हुए थे। बिल्कुल निराश और थका हुआ सा चेहरा था उनका। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था,मानो हंसते _खिलखिलाते हुए बच्चे से किसी ने खिलौने ले लिया हो और वह बच्चा उदास हो गया हो।
तभी उनकी दूर की रिश्तेदार की बहन शोभा आई।अपने भाई को देखकर बोली"भैया,कब तक उदास बैठे रहोगे?बिटिया की शादी है,और हम सब हैं ना!"शोभा की बातें सुनकर विनायक बाबू बोले"शोभा मैं जानता हूं की तुम सब मेरे साथ हो।मुखिया जी और पूरा गांव मेरे साथ हैं,लेकिन सोचो...दहेज में जितनी चीजों को देने का वादा किया था।अगर नहीं दिया तो....?"
इतना कहकर उनका गला रूंध गया। आंखों से आसूं बहने लगे।
"तो क्या? बताइए विनायक जी।"एक परिचित आवाज विनायक बाबू की कानों में सुनाई पड़ी।आवाज सुनते ही उन्होने देखा तो उनके भावी समधी यानी लड़के के पिता रामदरश बाबू और गांव के मुखिया जी खड़े मुस्कुरा रहे थे।
उनलोगो को देखकर विनायक बाबू हैरानी से खड़े होकर बोले "अरे,आप सब कब आए!"फिर शोभा की तरफ देखकर बोले",अरे शोभा,इनके लिए जरा जलपान की व्यवस्था करो।"
उनकी बातें सुनकर रामदरश बाबू बोले"अरे रहने दीजिए साहब, आइए थोड़ा काम की बातें हो जाए।"इतना कहकर रामदरश बाबू और मुखिया उसी कमरे में रखी गई रखी गई कुर्सियों पर बैठ गए।फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ।
"देखिए रामदरश बाबू, मै तो बरबाद हो गया।आग कैसे लगी?अभी तक मैं जान नहीं सका हूं सारे रुपए और कुछ सामान जल गए।"
इतना कहने पर उनकी आंखें नम हो गईं।यह देखकर रामदरश बाबू बोले"आप उसकी चिंता मत कीजिए।मुखिया जी हमें सब कुछ बता दिए है।सबसे बड़ी दहेज तो बेटी होती हैं,और सरोज तो पढ़ी _लिखी, संस्कारी लड़की है।भला उसे ठुकरा कर मै कोई गलती क्यों करूं?"
यह सुनकर विनायक बाबू का चेहरा खिल उठा।वे बोले"आप दोनों ने ही मेरी समस्या को दूर कर दिया है।काश!यह समाज आप लोगों की तरह ही सोचता।"तभी शोभा नाश्ते लेकर आई,और बोली"भैया यह नाश्ता।"सभी उसकी तरफ देखने लगे।

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