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अपनी दर्द किस्से सुनाऊ-मजदुर जैसी भी जिंदगी ना हमार

Kranti Raj 13 Jul 2023 कविताएँ समाजिक 5533 0 Hindi :: हिंदी

मेरे पैर में फटे व्यार
किस्से मै सुनाऊ
ना  घर सुने ना सरकार सुने 
क्या घुट घुट के मर जाऊ 

इस महगई की दौड में
ना पेट  भरे ,ना खुश मेरे परिवार
क्योंकि  महीना में वेतन  न देती सरकार
कर्ज लेकर परिवार चलता ,बहुत ही कम वेतन हमार

मजदुर की दर्द भी बरावर है
दिन भर करते काम
शाम की ना मिले मजदुरी
जैसे हो दाता राम

झुठा लोग का न्याय मिले
झुठा जग पतियाय
राजनीति की मकडजाल
फस गया संविदा कर्मी के अधिकार

शोषण में रोज पिस रहे हम
साहव करे रोज फरमान
दर्द से हम तडप रहे
जैसे कोई काटे धान

जिंदगी की दर्द हम सुनाऊ
मजदुर जैसी भी जिंदगी ना हमार

 कवि-क्रान्तिराज

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