Ashok Kumar Yadav 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम 73679 0 Hindi :: हिंदी
कविता- भारत देश की आजादी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी थी भारत मां, अपने महावीर लाल से लगा रही थी गुहार। पराधीन बनकर खो दी मैंने अपनी अस्मिता, कोई तो सुन लो अपने जननी की पुकार।। मां की करुणा देख उठ खड़े हुए भारतवासी, जो जन थे पहले बेबस, मायूस और लाचार। शंखनाद करके बिगुल बजा दिए संग्राम की, नहीं सहेंगे राक्षस रूपी अंग्रेजों के अत्याचार।। कृषिक्षेत्र में काम करते किसान हल लेकर दौड़े, फावड़ा ले-लेकर निकले श्रम करते हुए मजदूर। तोप और बंदूक लेकर घेर लिए रक्षक तीनों सेना, उतर गए मैदान में नेता राजनीति सीख भरपूर।। सून गोरे तुम्हारी गोलियों ने हमारे खून को पीया, अभी भी हमारे तन में है तुम्हारे कोड़ों के निशान। हम लोग जुल्म को सहकार बन गए हैं फौलादी, भारत माता की कसम मिटा देंगे तुम्हारी पहचान।। एक गोरा ने कहा मरे हुए दिल अब जिंदा हो गए, मर रहे हैं हमारे लोग अब छोड़ चलो सब प्रभुता। लौटा देते हैं भारतीयों को उनकी जननी जन्मभूमि, कहीं हम गुलाम ना बन जाएं दो उनको स्वतंत्रता।। कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़।