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*प्रेरक कहानी - *'स्टील का डब्बा'* 💐सपनों का सौदागर.......करण सिंह💐

Karan Singh 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक Ram/जय श्री राम/धार्मिक महत्व/सपनों का सौदागर.... करण सिंह/ Karan Singh/google/सनातन धर्म/स्टोरी/shayari/शायरी/संत रविदास/Ram/जय श्री राम/धार्मिक महत्व/सपनों का सौदागर.... करण सिंह/ Karan Singh/google/सनातन धर्म/स्टोरी/shayari/शायरी/संत रविदास/*🌳🦚प्रेरक कहानी🦚🌳* *💐जमी हुई नदी💐* 👌सपनों का सौदागर....करण सिंह👌/जमी हुई नदी/*प्रेरक कहानी* 👇👇👇 *"पडोसी......* 💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर..... करण सिंह💐/पड़ोसी/*🌳🦚प्रेरक कहानी🦚🌳* *💐💐अनोखी साइकिल रेस💐💐* #प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......करण सिंह#/अनोखी साइकिल रेस/*प्रेरणास्पद कहानी..✍🏻* *काबिलियत की पहचान..* 💐सपनों का सौदागर.......करण सिंह💐/काबिलियत की पहचान/ ●प्रेरक कहानी● *झूठा अभिमान* 💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......करण सिंह💐/झूठा अभिमान/*प्रेरक कहानी* *'स्टील का डब्बा'* 💐सपनों का सौदागर.......करण सिंह💐/स्टील का डिब्बा/ 34455 0 Hindi :: हिंदी

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*प्रेरक कहानी*
              *'स्टील का डब्बा'*
💐सपनों का सौदागर.......करण सिंह💐
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चिलचिलाती ज्येष्ठ की दुपहरी हो या सावन की घनघोर बारिश हो सरला अपने बेटे आलेख की स्कूल बस के इन्तेजार में समय से पहले बस स्टॉप पे आकर खड़ी हो जाती थी.पल्लु से पसीना पोछती या फिर बारिश की बूंदे हटाते हुए वो बार बार सड़क में दूर तक निगाह दौड़ाती.बस स्टॉप से आलेख को लेकर घर पहुंचने तक उसे लगभग सात आठ मिनट का समय लगता था.इसलिए साथ मे स्टील के एक छोटे डब्बे में आलेख के पसन्द की कोई मिठाई या नमकीन ले आती थी.बस से उतरते ही आलेख जब  मां के हाथों से वो डब्बा झपट लेता तो सरला मुस्कुराते हुए उसे निहारते रहती.

गांव की पाठशाला में पांचवी तक पढ़ी सरला किताबो में लिखी बातें तो आलेख को नहीं समझा पाती थी पर जीवन मे पढ़ाई लिखाई के महत्व को वो काफी अच्छे से समझती थी.


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*प्रेरक कहानी*
              *'स्टील का डब्बा'*
💐सपनों का सौदागर.......करण सिंह💐
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सत्ताईस साल बीत गए थे.नन्हा आलेख बड़ा वैज्ञानिक बन चुका था.पिछले पांच सालों से वो यूरोप में था. साथ काम करने वाली मीनाक्षी को आलेख पसन्द करने लगा था.मीनाक्षी एक बड़े सरकारी अधिकारी की बेटी थी.फोन पे बताया था आलेख ने मां को मीनाक्षी के बारे में.

अब वो देश लौट रहा था .मीनाक्षी भी साथ आ रही थी.सरला हवाई अड्डे के बाहर बेटे और होने वाली बहुँ का इन्तेजार कर रही थी.उसे स्कूल के वो दिन याद आ रहे जब वो बस स्टॉप पे बस के आने का इन्तेजार करती थी .मीनाक्षी के घर वाले भी एयरपोर्ट के एग्जिट गेट में आ गए थे.उन्होंने हाथों में खूबसूरत फूलों का बुके लिया हुआ था आलेख और मीनाक्षी के स्वागत के लिए.पर बेचारी सरला को ये बुके ऊके का गणित कहाँ समझ आता था.वो तो आज भी आँचल में छुपा कर ले आयी थी स्टील का एक डब्बा और उसमे आलेख की मन पसन्द सोम पापड़ी.

जहाज उतर चुका था. एग्जिट गेट में मेहमानों का इन्तेजार कर रहे लोगो की हलचल बढ़ गयी थी.सारे लोग गेट के मुंह पे जमा हो गए थे.पर सरला जाने क्यो धीरे धीरे पीछे सरक रही थी. स्वागत के अंग्रेजी तौर तरीके ,ये बड़े बड़े लोगो का अंदाज कहाँ था उसके पास.दुनियादारी की दौड़ में बेटे को आगे कर चुकी सरला शायद खुद कही पीछे रह गयी थी....


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*प्रेरक कहानी*
              *'स्टील का डब्बा'*
💐सपनों का सौदागर.......करण सिंह💐
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अचानक उसके आँचल में छिपा डब्बा किसी ने झपटा तो वो एकदम से घबरा गई थी....पर अगले ही पल जैसे उसकी आंखों के समक्ष कितना सुखद पल आ खड़ा हुआ था.सामने आलेख खड़ा था बचपन वाली उसी मुस्कान के साथ.आलेख ने मां के पांव छुए और जल्दी जल्दी खोलने लगा स्टील का वो डब्बा.चारो सोम पापड़ी वो एक साथ हाथ के पंजो में समेटने लगा तो मीनाक्षी उससे अपना हिस्सा छीनने लगी.
"इसमे मांजी  मेरे लिए भी लेकर आई है"
बोलते हुए आलेख और मीनाक्षी छोटे बच्चों की तरह एक दूसरे से झगड़ते झगड़ते माँ को लिपट चूंके थे.
सरला निश्चिंत हो चुकी थी कि दुनिया का नामचीन वैज्ञानिक बन चुका आलेख अन्दर से आज भी बालकपन का वही रूप लिए हुए है.
"बहन जी हो सके तो इस सोम पापड़ी में चासनी बन कर घुला आपका वात्सल्य और आपके संस्कार में एक छोटा हिस्सा मेरी बेटी मीनाक्षी को भी दे दीजिए."
गुलदस्तों को एक तरफ रखते हुए मीनाक्षी के ताकतवर पिता हाथ जोड़ सरला के सामने खड़े थे.


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*प्रेरक कहानी*
              *'स्टील का डब्बा'*
💐सपनों का सौदागर.......करण सिंह💐
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*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है।*
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*हमारा आदर्श : सत्यता-सरलता-स्पष्टता*
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