Ravinder Gul 18 Jul 2023 ग़ज़ल अन्य 10265 0 Hindi :: हिंदी
चलते - चलते ✍️✍️✍️ शायद कभी मिलें न हों..ऐसे 'किसी' से हम जैसे कि मिल के आए हैं प्यासी 'नदी' से हम दुनिया-जहान में थे..कभी 'लाज़िमी' से हम रह-रह के अब हुए हैं मगर 'अज़नबी' से हम चालाकियों के आगे सरेंडर जो कर दिया क्यूं कर निकाले जाते न फिर बे-'दिली' से हम अपनों में रह रहे हो तुम आराम से रहो गैरों की बस्तियों में हैं राजी-'ख़ुशी' से हम पिछले कुछ इक महीने रहे शायरों से दूर मिलने गए हुए थे पहलवान 'जी' से हम तेरा फ़िराक़ है ना तेरा इन्तिज़ार है गुजरेंगे अब हमेशा उसी दिल गली से हम बर्ताव में ज़रा सा जो...रद्दो - बदल किया आबाद हो रहे हैं दिलों में तभी से हम 2 2 1 2 1 2 1 1 2 2 1 2 1 2 रविन्द्र 'गुल'