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मैं दर्द बेचने निकला हूँ।

Samar Singh 28 Apr 2023 कविताएँ दुःखद सुना है इस दुनियाँ में सब कुछ बिकाऊ है, मेरे तो असीम दुःख है, तो क्या कोई खरीद लेगा, कीमत चाहे जो माँग ले। 9313 0 Hindi :: हिंदी

इस भीड़ भरे बाजार में, 
हर एक चीज बिक रही है। 
लगाए अपना मजार कहाँ, 
कोई ठौर नहीं दिख रही है। 
दर्द जो दिल में था कब से, 
आज आँसू बन के पिघला हूँ। 
है कोई खरीददार यहाँ पे क्या, 
मैं दर्द बेचने निकला हूँ।। 

ये कैसा संसार है, 
होता यहाँ व्यापार है। 
पैसों का ही मोल है, 
ऊँचे सबके बोल है। 
मिट्टी से लेके स्वर्ण तक, 
सभी अनमोल है। 
सहता रहा जाने क्या- क्या मैं, 
न चाहते हुए हर विष को निगला हूँ। 
है कोई खरीदादार यहाँ पे क्या, 
मैं दर्द बेचने निकला हूँ।। 

हवा को बिकते देखा हूँ, 
चाँद को बिकते देखा हूँ। 
दर्द हर जगह है, 
आँखों से रिसते देखा हूँ, 
पल भर में बदलते, 
हर मौसम को देखा हूँ। 
बड़ी बदकिस्मत वाली
मैं एक रेखा हूँ। 
हर तरफ है हरियाली छाई, 
मैं बर्फ में सिमटा श्रीनगर, शिमला हूँ, 
है कोई खरीददार यहाँ पे क्या, 
मैं दर्द बेचने निकला हूँ।। 

रचनाकार- समर सिंह " समीर G "

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