संदीप कुमार सिंह 01 May 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 7072 0 Hindi :: हिंदी
सुनयन सुकाकुल नगर रूप भवन, चारों और व्याप्त सनसनाती खामोशी। वन-वनिकाएं वृंद वृंदनाएं वृंदावन, साबरमती के झूले फूल उपवन। आज कल करते वयोवृद्ध वट वृक्ष, पूर्णिमा की चांदनी रात, चमचमाती आभा। अोज तेजस्वी श्रद्धा सुमन अर्पित, कल्प कल्पित नवीन कल्पना, कलरव करती नसीहत माहित उपमा। अनुपम अनुराग निर्जला मूर्ति नैसर्गिक स्वर्गिक चमत्कारिक लोक परलोक, अचंभित उत्साहित आनंदित करती, सर्व समुचित निर्णायक। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....