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कविता

Kisan yashwant guldagad 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Man ke ghav 52130 0 Hindi :: हिंदी

अंधेरो की दुनीया उसमे हम अपनी मँजील ढुँडने चले,नही कोई रासता
नही कोई अपना, हम अनजान अपनी मँजील ढुँडने चले।

जो देखे हे सपने जो चाहा हे हमने ऊसे पुरा करने, हम अनजान 
अपनी मँजील ढुँडने चले।

जाना हे बहुत दुर आयेगी बाधाये उठेगी क्ई आँधीया,ये जानकर भी
हम अनजान अपनी मँजील ढुँडने चले।

माना की थोडी अलग चाह हे मगर दिलकी आवाज हे, प्यंस बुझाने
हम अनजान अपनी मँजील ढुँडने चले।

मालुम नही जो पाना हे वो मिलेगा या नही,मगर फिरभी
हम अनजान अपनी मँजील ढुँडने चले।
                                                       ........kisan guldagad

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