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मेंढक हैं बरसात के

संदीप कुमार सिंह 07 May 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5286 0 Hindi :: हिंदी

मेंढक हैं बरसात के, इनकी अभी बहार।
करते मिलकर ये मजे, कुछ दिन में  बेजार।।

मेंढक हैं बरसात के, समझ रहें हैं शेर।
सवा शेर से जब मिले, हो जाते हैं ढेर।।

मेंढक हैं बरसात के, तन मन में उत्साह।
 नहीं रहे नित यह खुशी, रहे अधूरी चाह।।

मेंढक हैं बरसात के, झूमें नाचें आज।
कल की चिन्ता है नहीं, रहे बजाते साज।।

मेंढक हैं बरसात के,कुछ दिन का यह राज।
रहें जरा आवार कर,कायम तब हो ताज।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍🏼
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)
बिहार

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