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कलम इक कमल मांगती है ,।

कविता पेटशाली 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 81475 0 Hindi :: हिंदी

ये ,कमल ,मांगती ,कलम,।
कभी ,पटल ,पर ,फिर ,मुझे ,मुस्कुराने ,दो,।
ये,सूरज,ये चाँद,।
रोज ,मुझे ,तकते हैं,।
पृथ्वी ,पर ,इक पुष्प की आशा ,है,।
कलम ,ये कहती ,मुझे ,इक ,कमल उगाने ,दो,।
नीरों ,को अब ,धीर कहाँ,
मुझे ,तो ,अथाह ,वर्षा ,कराने ,दो,।
ताकी ,बदले यह ,मिजाज , तनाव का, बदले मौसम में,
फिर ,हो ,इक पुष्प ,उगता ,कमल ,।
पथ ,पर ,यहीं ,इक ,कविता ,गुनगुनाने दो,।
कविता पेटशाली
















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