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जब तक घट में सांस है- तब तक मन में आस

संदीप कुमार सिंह 30 Jan 2024 कविताएँ समाजिक दोहा छंद आधारित कविता, पाठक पढ़कर अवश्य ही लाभान्वित होंगे, मुक्तक छंद, कुंडलिया छंद, रोला छंद, गीत, ग़ज़ल, शायरी, कविता 5273 0 Hindi :: हिंदी

जब  तक  घट  में  सांस  है, तब  तक  मन  में  आस।
मंजिल को पाना यहाँ, बस  मेरी  है  प्यास ।।

चलते  चलना  काम  है, मानूं  कभी  न  हार ।
नित  ही  दृढ़  विश्वास  से,करूं  जगत  गुलजार।।

बाधा तो आती  रहे,करो  सामना  यार।
हर  बाधा को पार  कर, पाओ सब अधिकार।।

भव्य  सुहानी  जिन्दगी, इससे  कर लो  प्यार।
रहें  नशा  से  दूर  सब,करिए  कुछ  उपकार।।

हम  मरें वतन  के  लिए, प्यारा अपना  देश।
मिट्टी की  खुशबू  हमें, देती  दृढ़  परिवेश।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप  कुमार  सिंह✍️
जिला:-समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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