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चाह है मंज़ील, चाह ग्मन,

Amit Kumar prasad 30 Apr 2023 कविताएँ समाजिक This poem is on the base of motivation. During this poem has been given the effort of practice. Because without practise never any work, Who would be happen success, So that this say to be never wrong that..Necessity gives help in the movement of invention. And with it during this poem desire will be meet to give glance. With it, description of this poem to be complet. And most of thanks of my all reader for given like of my previous all poem and with it, does hope that this poem will be get support as before. Jai Hind. 5910 0 Hindi :: हिंदी

चाह है मंज़ील, चाह ग्मन,
और चाह ही पथ‌ का संगम है!
चाह प्रभा का नुत्तन दृष्य, 
कर रही डगर हर पावन है!! 
‌ ‌‌         ‌‌‌‌‌           चाह है भक्ती, चाह कर्म, 
                     और चाह विकाश का लक्ष्य प्रम! 
            ‌         पथ चाहत्त चल‌ - चल सफल हुए, 
         ‌     ‌‍‌‌‌‌       चाहों के रहें अनमोल श्रम!! 
ना मोल‌ - त्तोल‌ निज़‌ निष्ठा से, 
चाहों ने कर्म अनमोल किएं! 
कुछ हमने चुन‌‌ ईत्तीहास धरें, 
कुछ चाहों ने ही बोल दिएं!! 
                       है मोल‌ धरा पाषाणों में, 
                       अम्बर पथ‌ त्तक लहरात्ती है! 
                       चाहत्त से‌ धरा का नाज़ प्रबल, 
‌‌‌‌‌‌               ‌‌‌‌‌        सफलत्ता‌ संख बज़ात्ती है!! 
चाह - राह, ईच्छा - अच्छादित्त, 
पथ‌ ग्मन चाह ही ईच्छा है! 
ईच्छा संघर्ष पथ चल‌ के सफल, 
मानव पथ‌ बनत्ती शीक्क्षा है!! 
                         और शीक्क्षा कि ये सफल कहानी, 
  ‌‌‌                       भरी पड़ी ईत्तीहासों में! 
                         धर मान प्रबल विद्वत्ता का, 
                         प्रत्ती वृहद - वृहद प्रयासों से!! 
यथा निम्न - निम्न कर्मों कि चाह, 
जब करे पथ‌ ग्मन वृहद - वृहद! 
हो के त्तल्लिन पथ चाह लिन, 
आ जाए निकट बस चलत्त‌ - चलत्त!! 
                   ‌‌‌‌      चल‌, चलत्त - चलत्त, चलत्ते‌‌ - चलत्ते, 
                         चाहों को राह मिल जाती है! 
  ‌‌‌‌‌                       कोई मंजील किसिकि दुर नहीं, 
          ‍‌‌‌‌               ईक्क्षा ही राह दिखात्ती है!! 
चल राह चलें हम चाहों के, 
बना‌ के कर्म को उज्जियाला!
संघर्ष बनेगा प्रम सफल, 
स्म प्रभा ज्ञान देने वाला!! 
                ‌‌‌‌‌          सुर से संगम पथ, धार‌ - धार, 
‌‌‌          ‌          ‌‌‍‌‌      हर बार ज्ञान जो धारा है! 
      ‌‌‌‌                    ईच्छा राही पथ मंज़ील का सार,
              ‌‌         ‌ ‌  और ईच्छा कर्म आधारा है!! 
ज्यों भीन्न - भीन्न रंगों का मिलन, 
करत्ती है सृज़न ईक रंग अलग! 
त्यों ईच्छा उपजात्ती शीक्क्षा हैं, 
और शीक्क्षा ही चाह स्वारां है!! 
      ‌                       बज़ी बिगुल शीक्क्षाओं कि, 
                             कर रहीं मंज़ीलें अभीन्नदन है! 
        ‌‌                 ‌‌    चाह है मंज़ील, चाह ग्मन,
                             और चाह ही पथ‌ का संगम है!! 
संग चलत्त - चलत्त‌ राही के पथ, 
पथ - पथ पर ज्ञान का वाद धरे! 
और कर्मवीरत्ता क्या होत्ती हैं? 
ये चाहत्त‌ ही आभाश‌ धरे!! 
 ‌‌‌‌‌‌‌                            आभा कि सुनहरी प्रभा भोर, 
                             निखरत्ती है लेकर नुत्तन चाह! 
‌‌‌‌‌‌‌‌                             उन‌ जर्रों के हर कर्मों में, 
‌‌‌                             दिखत्ती है मंज़ीलों कि ईक्क्षा!! 
जो मन से हारा न विजय हुआ, 
परिश्रम हर श्रम से लुभावन है! 
और चाह प्रभा का नुत्तन दृष्य, 
कर रही डगर हर पावन है!! 

कवी     :   अमित्त कुमार प्रशाद
Poet   :   Amit Kumar Prasad..🌹

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