SACHIN KUMAR SONKER 07 Apr 2023 कविताएँ समाजिक GOOGLE 7118 0 Hindi :: हिंदी
मेरे अल्फ़ाज़ (सचिन कुमार सोनकर) अभी तो सिर्फ पैरों पर खड़ा हुआ हूँ अभी तो चलना बाकी है। लड़खड़ाते पैरों का संभालना तो अभी बाकी है। कभी गिरना तो कभी गिरकर उठना तो अभी बाकी है। अभी तू चंद क़दम ही पैर बढ़ाये है अभी तो दौड़ना बाकी है। अभी तो सिर्फ पंख फैलाये है मैने अभी तो उड़ान भरना बाकी है। अभी तो नापी है मुठ्ठी भर ज़मीन अभी तो सारा आसमान बाकी है। अभी तो रत्तीभर हासिल हुआ है अभी तो सारा जहान बाकी है। रास्ते तो देख लिया है पर मंज़िल का दिखना अभी बाकी है। अभी तो सिर्फ मंजिल देखी है अभी तो मंजिल पाना बाकी है। अपनी मंज़िल पर पहुँच कर चैन की साँस लेना तो अभी बाकी है। अभी तो सिर्फ मैने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई है। मेरे तरकश में अभी कई तीर अभी बाकी है। तक़दीर के भरोसे बहोत जी लिया तकदीरों का बदलना तो अभी बाकी है। हमने तो सवाल पूछ लिया है उनका जवाब आना अभी बाकी है। इम्तिहान दे चुका हूँ अभी तो परिणाम आना बाकी है। इतने से संतुष्ट होने वाला नही हूँ मैं अभी तो कई पायदान बाकी है। अभी तो सिर्फ गुल देखा है अभी तो गुलिश्तान देखना बाकी है। गुज़र गया जो कारवाँ उसके निशान अभी बाकी है। भूली बिछड़ी यादों का सामान अभी बाकी है। अभी तो ज़िन्दगी जी रहा हूँ मौत कर फ़रमान आना तो अभी बाकी है।