Rambriksh Bahadurpuri 28 Jun 2023 कविताएँ अन्य #Rambriksh Bahadurpuri #Rambriksh Bahadurpuri Kavita #Rambriksh Bahadurpuri Ambedkar Nagar #Rambriksh Bahadurpuri #prem per kavita 5715 0 Hindi :: हिंदी
तेरी कमी खलती है आज भी तेरी कमी, तू आज भी है मेरे लिए बेटी नन्हीं। कैसे मैं समझूं? मानूं मैं बातें पराई पराई कहते हर कोई यही सोंच कर आंखों में छा जाती नमी खलती है आज भी तेरी कमी। आता कहीं से तुझे देखता था कभी भी न सोंचा न पाया कि तू दूर होगी मुझे छोड़कर यूं, खलती है आज भी तेरी कमी। चली तो गयी, हमें छोड़कर तुम, दूर फिर भी नही हूं, तुमसे मैं आज भी, मिलने की चाहत में सांसें रह जाती है थमी थमी, खलती है आज भी तेरी कमी। वही घर की आंगन रसोई नन्हें नन्हें हाथों की नन्हीं नन्हीं रोटियां, अब कहां? मिलते हैं यही सब सोंच कर याद आते हैं तेरी जमीं, खलती है आज भी तेरी कमी। रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश 9721244478
I am Rambriksh Bahadurpuri,from Ambedkar Nagar UP I am a teacher I like to write poem and I wrote ma...