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शीर्षक (कविता कैसे बनती है?)

SACHIN KUMAR SONKER 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य GOOGLE कविता कैसे बनती है? 75658 0 Hindi :: हिंदी

शीर्षक (कविता कैसे बनती है?)
मेरे अल्फ़ाज़ (सचिन कुमार सोनकर)
कविता यूँ ही नही बन जाती है, 
कविता बनाने लिये के मूड बनाना पड़ता है।
मन को शांत कराना पड़ता है।
दिल में अरमान जगाना पड़ता है।
अपने जस्बातो को शब्दो के फरमान बनाना पड़ता है।
दिल ना हो खुश पर चेहरे पर मुस्कान लाना पड़ता है।
शब्दों में शब्दों का मेल मिलाना पड़ता है।
शब्दों को कलम का हथियार बनाना पड़ता है।
शब्दों को कलम की स्याही से एक नया आयाम बनाना पड़ता है।
शब्दों का ताना बाना है, 
विचारो का मन में आना है।
कविता रचना करने का यही मूलमंत्र है।
बस कविता का यही एक पैमाना है।
मन में उठ रहे विचारो के तूफान में शब्दों की कस्ती चलानी है। 
मस्तिष्क में उठ रहे परिकल्पनो को कागज में उजागर करते है।
तब जा कर कही कवितायों में विभिन्न तरह के रंग भरते है।
बस यही सोच कर मन में बैठा था, 
इस बार एक नई सोच की कविता बनानी है।

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