शहर से निकल कर सुनी राह मे मुझको प्यास सताने लगी!
नज़रे दौड़ाई तो देखा के ईक पेड़ के नीचे बैठी थी ईक बुड़ी दादी!!
पास गया तो देखा कि वो माटी का घडा लेकर बैठी!
निस्वार्थ वो करती सेवा हर प्राणी कि प्यास बुझती!!
उस दादी की सेवाभावना और माटी के बर्तन ने, मुझ भटके को राह दिखा दी!
उस छोटे से दृश्य ने मुझको गांव कि याद दिला दी!!
बैठ गया मैं पेड़ के नीचे यादो ने मुझे गैर लिया!
पैर छुए जो दादी के मुझको हिये से उसने लगाया!!
बचपन कि वो यादे सारी गांव का वो अपना पन!
याद आ गये बरस पुराने आंखो से बरसा लड़कपन!!
खेतो कि वो हरियाली गांव कि वो पगडंडी!
जानवरों वो चहलकदमी कुए का वो मिठा पानी!!
याद आ गये खेल पुराने पेड़ो पर वो झुला झुलना!
याद आ गये दोस्त पुराने गुल्ली डंडे का खेल निराला!!
मिट्टी कि वो सुगंध सुहानी चूल्हे कि वो स्वादिष्ट रोटी!
बाबा का वो खेत झोतना दादी कि परियों कि कहानी!!
अम्मा कि डांटे मिठी भईया की वो प्रेम कि चिट्ठी!
दिल ने खुद से प्रश्न किया भूल गया तूं अपनी मिट्टी!!
उस दादी की सेवाभावना और माटी के बर्तन ने, मुझ भटके को राह दिखा दी!
उस छोटे से दृश्य ने मुझको गांव कि याद दिला दी!!