मोहित पिपरोनियाँ 30 Mar 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत लाखों में एक हो तुम।भीड़ में भी तुम्हे खोज लेता हूँ, 6153 0 Hindi :: हिंदी
लाखो में एक हो तुम भीड़ में भी तुम्हे खोज लेता हूँ। पहचान ते तक नही मुजे तुम फिर भी तुम्हे मैं अपना कहता हूं। लाखों में एक हो तुम भीड़ में भी तुम्हे खोज लेता हूँ। मेरी उलझी हुई पहली का जबाब हो तुम सपनों में आने वाले खाब हो तुम माना हो नही मेरी तक़दीर में तुम फिर भी तुम्हे अपने साथ देखता हूँ लाखों में एक हो तुम भीड़ में भी तुम्हे खोज लेता हूँ। मेरी कविता के अल्फ़ाज़ हो तुम पन्नों पर सिमटे जज्बात हो तुम मेरी कहानी का किरदार हो तुम इस जहाँ मैं सबसे खास हो तुम मेरी खुशियों में तेरा होना ढूंढता हूँ तुझमे में रब,रब में तुजे ढूंढता हूँ। एक अंजान सा रिस्ता है। तुजसे मेरा इस रिश्ते में एक नई पहचान देखता हूँ लाखो में एक हो तुम भीड़ में भी तुम्हे खोज लेता हूँ। लेखन-रमित मोहित