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आबरु की तख्ती पे लिखे है-बेगुनाह

Raj Ashok 07 Dec 2023 कविताएँ समाजिक आबरू 9503 0 Other :: Other

आबरु, की तख्ती पे लिखे है। 
बेगुनाह ,भीड़ के गुनाह 
नासमझ ,
जमाने ने ,अफवाहो़ कि आँधी मे
सच, 
को समझना भी जरूरी नहीं समझा ।
एक ,चाहत की
चिंनगारी ने जात, पात घर्म 
सब समझाया ।
पर ग़ुरूर था। 
ये कद्र ना कर सका अरमानो की
बस उलझ गए 
घागों के सीरे आपस मे
और उलझते  चले गए

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