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कोई लौटा दे वो दिन

Adesh Kumar 30 Mar 2023 कविताएँ बाल-साहित्य कोई लौटा दे वो दिन। 17463 0 Hindi :: हिंदी

कोई लौटा दे वो दिन ,
जिसमें खेला था मेरा बचपन।।
चू -चू कर चिड़िया आती थी,
बिखरे दाने चुन -चुन आंगन से खाती थी।
मैं दौड़ कर उन्हें पकड़ा करता था,
पर हाथ नही आती थी,पर फैलाकर उड़ जाती थी।
नीले गगन में उड़ने को मेरा भी मन करता था।
स्वछंद था उस पल का जीवन.........
कोई लौटा दे वो दिन
जिसमें खेला था मेरा बचपन।।
तड़पकर मां मुझे गोद में उठा लेती थी,
जब मैं रोया करता था।
सीने पे हाथ रख लोरी सुनाती थी,
जब मैं सोया करता था।
चुभता था कोई कांटा मेरे पैर में,
दर्द की होती थी मां को तडपन....
कोई लौटा दे वो दिन
जिसमें खेला था मेरा बचपन।।
जब मैं खुले आसमा में जाता था।
जोर -जोर से चिल्लाता था ।
फिर दूर से कोई मुझको उसी आवाज में बुलाता था।
मैं खेत के तरुबरों से,
लिपट कर खेला करता था।
सच्चा लगता था, अच्छा लगता था,
तरुबरों का दामन.......
 कोई लौटा दे वो दिन
जिसमें खेला था मेरा बचपन।

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