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आ लौट चली आ घर अपने-है कद्र नही जिस नारी को पति के सारे अरमानों की

Rambriksh Bahadurpuri 13 Jul 2023 कविताएँ समाजिक #Rambriksh Bahadurpuri #Rambriksh Bahadurpuri kavita #Rambriksh Bahadurpuri Ambedkar Nagar #Jyoti mauriya per kavita #Ambedkar nagar poetry 7392 0 Hindi :: हिंदी

आ लौट चली आ घर अपने 

है कद्र नही जिस नारी को,पति के सारे अरमानों की
वह हो ना सकती है नारी,बस सिवा मूर्ति अपमानों की
हाथों में थामा हाथ समझ,चंदा की शीतल ज्योति यही
सिंदूर मिटा कर हाथों से,निर्भीक निडर बन ज्योति
चली। 

सूरज की किरणों सी तपती,सारे रिस्तों को तोड़ चली
सिरमौर लगे सिंदूर सजे,किस सहज भाव मुख मोड़
चली 
पति है अपने घर का दीपक,पत्नी घर द्वार उजाला है
बंधन है गहरे रिस्तों का, पत्नी चाभी पति ताला है। 

मन में आशा विश्वास लिए,जिस दिन पत्नी पढ़ जाएगी
दुख दर्द गरीबी हम सबके, सब जीवन से मिट जाएगी 
वह जोड़ जोड़ पाई पाई, पत्नी को भेज दिया पढ़ने
पर पता किसे था पढ़ कर वह,कर जाएगी जो ना करने। 

ना शर्म हया ना लाज रही, गैरों से नाता जोड़ चली 
सातो जन्मों के बंधन को,किस सहज भाव से तोड़ चली
कैसी नारी कैसी माता,कैसी पत्नी कैसी बेटी 
बन आयी थी घर में दूल्हन,पर तू निकली सच्ची झूठी। 

कुछ बन कर वापस जब आती,घर पर आरति तेरी होती 
गौरव से सीना बढ़ जाता, इतिहास अमर तू कर जाती 
छि छि समाज कर रहा देख अब, धिक्कार कर्म को रहे सभी
अपना तो अपना होता है,आ लौट,नही कुछ हुआ अभी। 

ना सोंचा तनिक विचार किया,ना फूटी ममता धार बही
कल के बच्चे जब पूछेंगे?समझाओगी क्या गलत सही 
तू पढ़ी लिखी है समझदार, दुनिया है चुप हो जाएगी
जाएंगे गलती भूल सभी,जब अपनों में तू आयेगी। 

आ लौट चली आ घर अपने,अपने ही तुझको चाहेंगे
अपने तो अपने होते हैं, फिर अपने ही स्वीकारेंगे 
आ सींच प्रेम के पौधों को,भर दे खुशबू सम्मानों की
महकेगी घर की फिर बगिया,हर एक एक अरमानों की। 


                रचनाकार
           रामबृक्ष बहादुरपुरी
       अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश

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