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एक टूटी आस- किसी के हक के पैसे नहीं मारने चाहिए

Chanchal chauhan 09 Jan 2024 कहानियाँ दुःखद मोहन एक झोपड़ी में रहता था 11669 0 Hindi :: हिंदी

मोहन एक सोलह साल का लड़का होता है।उसके माता-पिता बहुत गरीब होते हैं।उनके पास रहने को मकान भी नहीं था।वह एक झोपड़ी में रहते थे।जाड़े में बहुत ठंड लगती थी। बरसात में वह झोपड़ी टपकती थी। उसके माता-पिता भी परेशान रहते थे।उसकी मां बीमार रहती थी।वह लड़का चाहता था।वह भी मकान में रहे ।उसने सोचा वह मेंहनत मजदूरी करें बहुत पैसे कमाए जिससे वह अपनी मां की दवाई,घर का खर्चा, मकान बना सकें।मोहन पांचवीं कक्षा तक पढ़ा था।उसके माता-पिता के‌ पास इतने पैसे नहीं थे वे उसे आगे पढ़ा सके।मोहन ने एक सेठ के यहां काम करना शुरू कर दिया।मोहन को एक महीना हो गया काम करते।मोहन को बड़ी आस थी उसे पैसे मिलेंगे उसको उसकी मेंहनत का फल मिलेगा।जब सुबह को मोहन सेठ के घर गया तो सेठ ने उसे मजदूरी के आधे पैसे दिये । मोहन निराश हो गया।उसे बड़ा दुःख हुआ।उसके मेंहनत की उसे आधी कमाई मिली ।वह घर की जरूरत कैसे पूरी करेगा। मां का इलाज तो क्या सकता था इतने पैसे में उसे और चाहिए थे।उसकी मेंहनत के पूरे पैसे नहीं दिये।जितने सेठ ने तय किये थे।और उसे अगले दिन से काम पर आने को कहा।अगली बार दें दूंगा तुम्हारे जो पैसे बचाएं हैं।बेवस लाचार मोहन क्या करता एक और आस लेकर वह फिर से काम करने लगा।उसका दूसरा महीने भी पूरा हो गया ।जब पैसे देने का नम्बर आया तो सेठ उस दिन गायब हो गया। मोहन तीन दिन तक लगातार आया उस सेठ नहीं आया।सेठ चौथे दिन आया मोहन बहुत खुश हुआ।अब उसे पैसे मिलेंगे कुछ तो कर पायेगा।सेठ ने पैसे निकाले उसके हाथ पर रखें मोहन ने गिने तो पैसे तो इस बार भी कम थे।पहले के क्या देता ।मोहन की आस फिर से टूट गई।वह जो सपना पूरा करने की सोच रहा था।वह टूटता नजर आ रहा था। मोहन ने उदास मन सेठ से कहा,"आपने तो बोला था।अगली बार पूरे पैसे दे दूंगा आपने तो दिये नहीं पहले के भी कुछ रह गये थे।" सेठ ऊंची आवाज में बोला,"इतने ही पैसे मिलेंगे काम करना हैं तो करो वरना बहुत है काम करने वाले। मोहन फिर कुछ नहीं बोला।वह उदास मन से घर चला गया।शाम हो गई उसकी मां ने खाना दिया उसने मना कर दिया मां मुझे भूख नहीं हैं।उसकी मां ने कहा," सुबह ही तो खाया था भूख क्यों नहीं हैं?"मोहन ने कहा," ऐसे ही मां आप खा लो ।"उसकी मां ने कहा,"मैं भी नहीं खाऊंगी जब तू नहीं खा रहा क्या हुआ हैं ये तो बता।"मोहन ने कहा,"कुछ नहीं हुआ?"मेरा मन ही नही था अच्छा लाओ  खा लेता हूं आप भी खा लो। दोनों मां बेटी ने खाना खा लिया।मोहन को पूरी रात चिंता रही।काम पर जाऊं या नहीं बड़ी मुश्किल से तो काम मिला था। मोहन ने सोचा थोड़े ही सही घर का खर्चा तो चल जायेगा जब तक दूसरा काम नहीं मिलेगा वहीं करुंगा वह अगले दिन काम पर चला गया।थोड़े दिन बाद उस सेठ के साथ एक आदमी ने धोका किया।सेठ के पचास हजार रुपए मार लिये सेठ को बड़ा दुःख हुआ। उनसे मन में सोचा मुझे कितना दुःख हुआ मेरे पैसे मार लिये हैं। मोहन को कितना दुःख हुआ होगा मैंने उसके पैसे मार लिये उसके तो मेंहनत के पैसे थे।वह तो गरीब था।सेठ को अपनी ग़लती का एहसास हुआ।सेठ ने मोहन के जो पैसे रख लिये थे।उसे दे दिये।उसे आगे और बढ़कर पैसे देने लगा। मोहन खुश हो गया।उसने बहुत पैसें जोड़ लिये उसने अपनी मां का इलाज कराया फिर एक मकान बनाया।उनका अपना पक्का घर हो गया। किसी के हक के पैसे नहीं मारने चाहिए।

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