Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक बो जो भी था 6198 0 Hindi :: हिंदी
बो जो भी था बेड़ियों को तोड़ दो बो चार की चिंता छोड़ दो बक्त बेरह बन बैठा हैं मूड मूड के देखना छोड़ दे हार से तुम सिख लो समय को कोशना छोड़ दो आग लगा के सिने में रफ़्तार बढ़ा लो जीने में किस्मत का रोना बंद करो औरो पे हसना कम करो जो बित गया बो जो भी था अच्छा था या बुरा था कर्म को ही धर्म समझ आगे का रास्ता तैये करो कुछ अपना सुन कुछ मन का कर बस खुद को ही बुलंद करो