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खिलते जब हैं फूल-दिव्य खुशबू तभी उड़े

संदीप कुमार सिंह 07 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है.जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभांवित होंगें. 4219 0 Hindi :: हिंदी

(Sortha Chhand) 
खिलते जब हैं फूल,दिव्य खुशबू तभी उड़े।
उड़ते जब हैं धूल,एक अड़चन  नव्य दिखे।।

होती है बरसात,कलियाँ सारी तब खिले।
आती जब है रात,दिल से दिल हस कर मिले।।

दिल में रहे जुनून,मंजिल निश्चित ही मिले।
मस्त चले जब खून,दुनियाँ सुन्दर अति लगे।।

आँखों में हो नूर,अंधेरा भागा रहे।
बनिए तभी हजूर,सबको ही प्रिय अब लगें।।

हवा चले जब तेज,नजारा तब खूब लगे।
रहें खुशी को रेज,दुआ ही दुआ तब मिले।।

तारे चमके व्योम,निहारे तब जीव सभी।
खुला रहे जब रोम,शीशा सा तन तब लगे।

गरमी में जब यार,चलती है नव मधु हवा।
होते सब गुलजार,जैसे हो यह निज दवा।।

खुला रखे जो कान,निर्भीक हो वही बढ़े।
और बढ़ाए मान,हसरत सब तब ही मिले।।

कदमों में तूफान,जादू जैसी हो वफा।
कायम रहती आन,रंगत अपनी ही बढ़े।।

लब पे हो मृदु बात,तब सब अपना ही लगे।
लय में हो जब गात,खुशियाँ अदभुत तब मिले।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:-समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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