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उल्टी चप्पल- पहनावे को चार चाँद

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ बाल-साहित्य बच्चों की कहानियां, बचपन, चप्पल, चप्पल का महत्व, बहन, छोटी बहन, कहानी, बचपना, बचपन की गलतियां 8017 0 Hindi :: हिंदी

उल्टी चप्पल कहें या उल्टा जूता दोनों ही हमारी बचपन की यादों से जुड़ी हुई हैं. बचपन में अक्सर मैं दाहिने पैर की चप्पल बाएँ में और बाएँ पैर की चप्पल दाहिने पैर में पहन लेता था. आज जब अपनी चचेरी बहन को वैसे ही उल्टी चप्पल पहन कर खेलते देखा तो खयाल आया कि मैंने भी तो ऐसा ही किया होगा जब मै उसकी उम्र का रहा हुंगा. वो 2 साल की है. जब चलने लगी थी तो चाचा को लगा कि कहीं उसके पैर में काँटा, कंकड़ वगैरह ना चुभ जाए इसलिए चाचा उसके लिए पीं-पीं करने वाली सुन्दर सी चप्पल ले आए. वो जब भी खुद से पहनती है तो हमेशा उल्टा ही पहनती है. इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य है. हमारे दृष्टि पटल पर किसी भी दृश्य की उल्टी छवि बनती है जिसे समय के साथ अनुभव बढ़ने पर हमारा दिमाग सीधा कर के समझने लगता है. लेकिन उस 2 साल की बच्ची को इतना अनुभव कहाँ कि उसका दिमाग छवि को उल्टा करके उसे सीधे का ज्ञान देता.
फिलहाल बात चल रही है उल्टी चप्पल की तो बच्चे चप्पल उल्टी क्यूँ पहनते हैं ये मैंने बता दिया. अब बात आती है मेरी की मैंने चप्पल के साथ क्या-क्या किया है और चप्पल से हमे और हमारे घर वालों को क्या फायदे और क्या नुकसान हैं?
चप्पल आज के ज़माने में जैसी है पहले वैसी ना थी. पहले की चप्पल लकड़ी की हुआ करती थी और उसमे बद्धी नहीं होती थी. बद्धी मतलब जो हमारे पैर को ऊपर से घेरती हुई रबर की डोरी रहती है जो चप्पल को हमारे पैर के साथ साथ चलने में मदद करती है वो बद्धी उस लकड़ी के चप्पल मे नही होती थी और पैर के अंगूठे और उंगली के बीच केवल एक लकड़ी की खूंटी होती थी जिसे अंगूठे और उंगली से पकड़ कर चला जाता था. इस लकड़ी के चप्पल का नाम था खड़ाऊँ. खड़ाऊँ भी पहले बहुत कम लोग पहनते थे. अधिकतर लोग तो नंगे पैर ही रहा करते थे. मैंने कुछ साल पहले मंदिर के पुजारी के पैरों मे खड़ाऊँ देखा था तो उनसे पूछा कि ये कैसी चप्पल है? उन्होनें मुझे बताया कि ये खड़ाऊँ है. इसे पहनने से हमारा पैर सुरक्षित रहता ही है साथ ही हमे भूमि की सख्ती का भी अनुभव बना रहता है. मुझे बात समझ तो नहीं आई लेकिन फिर मैंने दूसरा प्रश्न रख दिया कि इसे पहन कर चलने पर यह निकल जाती होगी ना तो उन्होंने बताया कि इसके लिए कई दिनों का अभ्यास करना पड़ता है फिर नहीं निकलती. मैंने उनसे कहा कि एक बार मुझे पहन कर चलने देंगे? उन्होनें दे दिया मै 3 कदम से ज्यादा नहीं चल पाया तब तक एक मेरे पैर से निकल कर पीछे छूट गया और दूसरा मेरे पैर मे अटका हुआ आगे घूम गया. मै धीमे से मुस्कुराया और बाबा को उनका खड़ाऊँ लौटा कर लौट गया.
खड़ाऊँ का अनुभव तो अच्छा रहा लेकिन मुझे मेरी उल्टी चप्पल फिर याद आ गयी. बचपन की एक घटना और बताता हूँ. मेरे भाई की चप्पल टूट गयी तो उसके लिए नयी चप्पल लायी गयी. मैंने बोला कि मुझे भी नयी चप्पल चाहिए तो घर वालों ने मना करते हुए कहा कि अभी तो तुम्हारी चप्पल टूटी नहीं है तो तुम्हें अभी नयी चप्पल क्यूँ चाहिए. जवाब सुन कर मै बिल्कुल भी खुश नहीं हुआ. मौका पाकर एक ब्लेड लिया और छत पर चढ़ गया. सोचा कि चप्पल की बद्धी काट देता हूँ फिर तो नई चप्पल मिलेगी मुझे भी. लेकिन फिर दिमाग दौड़ाया कि काटने का निशान घर वालों को समझ आ गया तो चप्पल मिले या ना मिले मैं जरूर घर के बाहर मिलूंगा. मैंने बद्धी को पूरा ना काट कर बस ब्लेड से उसे थोड़ा सा कुतर दिया ताकि कुछ दिनो बाद टूटे और निशान भी पुराना हो जाए. लेकिन टूटने पर मेरे चाचा निशान देख कर मेरा प्रपंच भांप गए और उसी टूटी चप्पल से मेरा स्वागत कर दिया. स्वागत का दुख तो हुआ लेकिन शाम को नयी चप्पल मिली तो खुशी मे स्वागत को भूल गया.
उल्टी चप्पल से बचपन की यादें तो जुड़ी ही होती हैं लेकिन साथ में कई रूढ़िवादी कहावतें भी सुनने को मिलती हैं. जैसे कि चप्पल ऊपर से नीचे की ओर पलट कर नहीं रखना चाहिए. आसमान की ओर चप्पल का निचला हिस्सा होने से भगवान नाराज़ होते हैं. घर में क्लेश होता है. बिना वजह वाद-विवाद और झगड़े होते हैं. मैं किसी की आस्था को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता लेकिन मैं यही सोचता हूँ कि घर के क्लेश में चप्पल का क्या दोष है. हाँ वो अलग बात है कि कोई बच्चा मेरी तरह चप्पल काट दे तो उसके ऊपर क्लेश का असर जरूर होगा. मेरे मन में भी उल्टी चप्पल को सीधा रखने वाली बात बचपन से बैठी हुई है तो जब भी उल्टी देखता हूँ सीधी कर देता हूँ. एक बात फिर भी मेरे मन में आती है कि जिसे इस चप्पल को सीधा रखने वाली बात में बहुत श्रद्धा होगी वो यदि मंदिर जाए या मस्जिद वहाँ तो अनगिनत श्रद्धालु आते हैं. उनकी उल्टी चप्पलें कैसे सीधा करेगा. वैसे सभी को ये बात जरूर सोचनी चाहिए कि चप्पल उल्टी रहती है तो अच्छी नहीं दिखती तो उसे सीधी कर ही देनी चाहिए. भले ही हमारी हो या किसी और की. चप्पल का बड़ा भाई होता है जूता. चर्चा चप्पल की हो रही है तो जूते का ज्यादा वर्णन नहीं करूंगा लेकिन है तो परिवार का सदस्य ही ना. तो बस इसीलिये परिचय करवा दिया. जूता पूरे पैर को ढक कर सुरक्षित रखता है और चलते समय चप्पल की तरह इसके निकल जाने का भय नहीं रहता. पुराने ज़माने में जूतों को पनही कहा जाता था. जूते और चप्पल का प्रचलन काफी पहले से है. राजा-महाराजाओं के काल में जूते केवल राज-दरबारी या साहूकार और धन-दौलत वाले लोग ही पहन पाते थे. सब के सामर्थ्य में नहीं था पहनना. मजदूर, किसान और छोटे-मोटे धंधे करने वाले तो  नंगे पैर ही ज़िन्दगी गुजा़र देते थे. बिना चप्पल के पैर में कांटे कंकड़ चुभने से पैर लहूलुहान हो जाता था. नंगे पैर सफर करने और काम करने से बीवाईयाँ फट जाती थीं. कितनी तकलीफ में ज़िन्दगी बसर करते थे. और एक आज का समय है कि चप्पलों की किस्में आने लगी हैं. ये नहीं पसंद तो दूसरी लेंगे. उस समय चप्पल लोगों की जरूरत थी आज केवल प्रदर्शन के लिए पहनते हैं. बिना चप्पल के रहना पड़ जाए तो आज का युवक गाड़ी में भी नंगे पैर कहीं नहीं जाना चाहता. उस समय नंगे पैर मीलों का सफर कर जाने वाले लोग कैसे थे जिन्हे लज्जा नहीं आती थी. आज के युवा महँगी चप्पल ना हो तो बाहर निकलने में लज्जा करते हैं. अपना अपमान समझते हैं. जरूरत की चीज को जरूरी ही समझना चाहिए तो बेहतर होता है. रही बात उल्टी चप्पल की तो जब तक चप्पल का अस्तित्व रहेगा चप्पल तो उल्टी होगी ही. हमारा काम है उसे प्यार से सीधा करना.  ले-देकर बात इतनी रह जाती है कि चप्पल हमारे ज़िन्दगी के लिए बहुत अहम है. और आज की चप्पल पैरों को सुरक्षा देने के साथ-साथ हमारे पहनावे को चार चाँद लगाने में अहम भूमिका निभाती है.
अपने जीवन एक घटना और बताना चाहता हूँ यदि आपलोग ऊब ना रहे हों तो. गर्मी की छुट्टियों में मैं गाँव गया हुआ था और सरसो की कटाई हुई थी. वहाँ सरसो को भूमि के करीब से काटा जाता है और दाने छुड़ा कर उसकी सुखी लकड़ियाँ जलावन की तरह इस्तेमाल की जाती हैं. भूमि के करीब से काटने पर जो थोड़ा सा तना बचा रह जाता है वो कांटे से ज्यादा खतरनाक होता है. मेरे घर पर दादाजी ने बकरियां पाली हुई थीं. सरसो के खेत में वो चरने गयी हुई थीं. दादी ने मुझसे कहा कि उन्हे हांक कर वापस ले आओ. मै चप्पल खोजने लगा लेकिन चप्पल शायद अंदर कहीं थी. तो मैं यूँ ही नंगे पैर निकल गया. खेत में जा कर किसी तरह बचते हुए उन्हें हाँक रहा था कि अचानक मेरा ध्यान हटा और एक तने पर मेरा पैर पड़ गया और पैर घायल हो गया. तब मुझे एहसास हुआ कि थोड़ी और देर भले ही लगती लेकिन कम से कम मै घायल तो ना होता अगर चप्पल पहन कर निकलता. बस दोस्तों इन्हीं शब्दों के साथ इस लेख को पूरा करना चाहता हूँ.

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