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डीपफेेक- विज्ञान का अभिशाप

virendra kumar dewangan 14 Dec 2023 आलेख दुःखद Misuse of Technology 6200 0 Hindi :: हिंदी

स्कूल, कॉलेज में जब निबंध लिखने दिया जाता था, तब निबंध का एक विषय अक्सर रहा करता था कि ‘विज्ञानः वरदान या अभिशॉप’।

तब जितने वरदान लिखे जाते थे, लगभग उतने ही अभिशॉप सूझा करते थे। बाद में उसमें एक अभिशॉप और जूड़ गया, जिसमें किसी के फोटो में किसी का चेहरा लगाकर या तो किसी को ब्लैकमैल किया जाने लगा या बदनाम किया जाने लगा या फिर खालिस मनोरंजन किया जाने लगा।

पर, अब विज्ञान या तकनीकी के दुरूपयोग कर्ताओं के द्वारा उससे भी आगे निकलकर ऐसे-ऐसे फेक वीडियो बनाए जाने लगे हैं, जिसे देखकर एकबारगी यकीन नहीं होता कि यह वीडियो असली है या नकली। क्योंकि आमजनों के पास इसका कोई पैमाना नहीं है कि वे इसकी जांच-परख कर सकें और सत्यता का पता लगा सकें।

इस विषय पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुःख व्यक्त करते हुए व सतर्कता बरतते हुए आगाह किया है कि डीपफेक टेक्नोलॉजी आज के समय की सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है, जो लोगों के दिमाग को दूषित कर जहां उपद्रव करवा सकती है, वहीं दंगा-फसाद, अराजकता और दो देशों में युद्ध तक करवा सकती है।

प्रधानमंत्री ने स्वयं कहा है कि वो डांडिया नृत्य व गाना बचपन में किया-गाया करते थे, जिसको लेकर उसी पर डीपफेक वीडियो बना दिया गया है और सोशल मीडिया पर मजे से प्रसारित भी हो रहा है।

जब प्रधानमंत्री का कोई शख्स डीपफेक वीडियो बनाकर मात्र मनोरंजन के लिए मनचाही जगह पर प्रसारित कर सकता है, तब आम लोगों खासकर महिलाओं को बदनाम करने के लिए इसका दुरूपयोग किस कदर किया जा सकता है, यह विचारणीय मुद्दा है।

दरअसल, डीपफेक वीडियो में किसी व्यक्ति के चेहरे या शरीर को डिजिटल रूप से बदलकर दूसरे का चेहरा लगा दिया जाता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) की मदद से ऐसे वीडियो-फोटो बनाए जाते हैं और ये वास्तविक लगते भी हैं। अमूमन व्यक्ति विशेष की छवि खराब करने के उद्देश्य से ये डीपफेक वीडियो बनाए जाते हैं। 

पिछले दिनों रश्मिका मंदाना समेत कटरीना व काजोल जैसी अभिनेत्रियों का डीपफेक वीडियो सामने आ चुका है, जो यही दर्शाता है कि इसकी साजिश कितने गहरे तक रची जा सकती है और कैसा चरित्र हनन किया जा सकता है?

यह ठीक है कि इसका संज्ञान लेते हुए सूचना एवं प्रोद्योगिकी मंत्री ने इंटरनेट मीडिया मंचों को निर्देशित किया है कि डीपफेक वीडियो की शिकायत मिलने पर उसे 36 घंटे के भीतर हटाएं। सवाल यह कि तब तक उनके मान-सम्मान का क्या होगा, जिसका डीपफेक वीडियो बनाया जा चुका है।

इसके अलावा यह जरूरी नहीं कि संबंधित शख्स को यह त्वरित मालूम हो जाए कि उसका डीपफेक वीडियो चल रहा है। वह इससे अनजान भी रह सकता है और उसके चरित्र की बघिया उघेड़ी जा सकती है। 

इसीलिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को यह प्राथमिक जवाबदारी दी जानी चाहिए कि वे किसी ऐसे वीडियो को प्रसारित न करें, जो बनावटी, नकली और डीपफेक हो। इसके बावजूद वे करते हैं, सरकार को उन पर पाबंदी लगाने में भी गुरेज नहीं करना चाहिए। वर्तमान में बड़ी संख्या में डीपफेक साफ्टवेयर उपलब्ध है और इनके जरिये ऐसे वीडियो का निर्माण धड़ल्ले से किया जाना मालूम हो रहा है।

सौ बात की एक बात, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का सहारा लेकर ऐसे खतरनाक वीडियों को अंजाम देनेवालों के लिए कड़ी-से-कड़ी सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए, जो उम्रकैद और लाखों रुपये के जुर्माने से कमतर न हो। जबकि अभी महज 1 लाख का जुर्माना और 3 साल की सजा है, जो नाकाफी है।
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