Raj Ashok 09 Dec 2023 कविताएँ अन्य ये ही वक्त है। 9398 0 Hindi :: हिंदी
अपनाने लगे है। बदलते . रीति - रिवाज़ शौक . बदल के जीना क्या... ? यहाँ खुद ब खुद बदल गए सब, तौर तरीक़े अब,किसी से शर्माना क्या....? मत ढकिऐ, ओढ़नी से सर, अगर है, पहचान ही संघर्ष ,,और स्वाभिमान तो खेल जाऐ, सतरंज की ये बाजी अपने सपनों की बिसात बिछाईए और फैक दीजिए, मौहरे बाजियों, का ये खेल हार-जीत का ये ताल- मैल है। ये एक द्वत और प्रतिकार है प्यार तुझे ,तो कर ना इन्कार भैद लक्ष्य , अपना ये ही वक्त है। राज