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सामाजिक ज्ञान- किताबो का ज्ञान ज़रूरी है मगर समाजिक ज्ञान के साथ संतुलित चले तो सार्थक है

Abhinav chaturvedi 07 Sep 2023 कहानियाँ समाजिक Abhinav chaturvedi 5374 0 Hindi :: हिंदी

कहानी -   (सामाजिक ज्ञान)

एक शहर में दो भाई रहते थे अमित और आनंद दोनों भाइयों में जमीन-आसमान का अंतर था। अमित पढ़ाई में थोड़ा कमज़ोर था मगर मिलनसार एवं समाज से जुड़ा हुआ था वहीं आनंद पढ़ाई में तेज मगर समाज से दूर-दूर तक कोई नाता न रखने वाला लड़का था। हमेशा घर के चार दिवारी में कैद रहना पसंद करता था। 
दोनों भाई एक ही स्कूल में पढ़ाई करते थे दोनों की 12वीं की परीक्षा निकट थी, माँ-बाप आनंद से परीक्षा में अधिक नम्बर लाने की आश लगाए रहते। वही अमित से केवल उसके उत्तीर्ण हो जाने मात्र की अपेक्षा से ही वे सन्तुष्ट थे। दोनों भाई अपने तौर-तरीके से पढ़ाई करते थे, अमित पढ़ाई के साथ-साथ दोस्तों के साथ खेल भी लेता था और उनसे बातें भी कर लेता था, मगर आनंद अपनी पढ़ाई को लेकर हमेशा की तरह चिंतित एवं दबाव में अध्ययन करता था, हो भी क्यों न- माँ-पिता की आशाएं दोनों भाइयों में आनन्द पर अधिक थी। दिन बीतता गया दोनों भाइयों ने अपने-अपने तरीके से अध्ययन किया , परीक्षा में उपस्थित हुए,अब परीक्षा परिणाम का दिन निकट था। मां-बाप की आंखें मानो आनंद की ओर उसके अधिक प्रतिशत आने की आश में बैठी रहती वही अमित अपनी परीक्षा परिणाम को लेकर ज्यादा चिंतित नही था, भविष्य का सुनहरा सपना उसने भी गढ़ रखा था परन्तु केवल प्रतिशत पर निर्भर होने मात्र से भविष्य का निर्णय नही करना चाहता था। 
आखिरकार परीक्षा परिणाम का दिन आ ही गया, माँ-पिता कभी दरवाजे की ओर ज्यादा ध्यान लगाए हुए रहते कि हो सकता है कोई बाहरी व्यक्ति घर आकर उनके बच्चों का परिणाम सुनाए कभी मन से उनके आवाज़ आती की आनंद अच्छे अंको से उतीर्ण हो गया। तभी अमित बाहर से दौड़ा-दौड़ा घर आता है खुश मन के साथ थके हालत में अपने मा-पिता को दोनों भाइयों का परिणाम बताता है जिसमे अपना प्रतिशत बताता है कि -" मेरा 70 प्रतिशत आया है, तभी उसकी माँ बीच मे टोकते हुए कहती है आनंद का बता बेटा जल्दी उसका परिणाम क्या हुआ? अमित बताता है माँ आनंद हमारे स्कूल में प्रथम स्थान हासिल किया है पूरे 96 प्रतिशत आये हैं। माँ-पिता की खुशी मानो सातवें आसमान पर होती है, मगर अमित थोड़ा निराश रहता है, खुशी उसे भी अपने भाई के अच्छे परिणाम आने की रहती है मगर माँ-पिता की उम्मीद केवल आनंद पर रहती है। अमित के 70 प्रतिशत पर कोई प्रतिक्रिया नही मिली। बावजूद इसके अमित अपने भाई आनन्द को बधाई देता है और पूरे मुहल्ले में मिठाई बांटी जाती है। परिणाम आने के बाद घर मे निर्णय लिया जाता है कि अमित उसी शहर में रहकर महाविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करेगा और आनंद दूसरे शहर में जाकर डॉक्टर की पढ़ाई करेगा। अमित घरवालों के निर्णय से सन्तुष्ट रहता है मगर आनंद चिंतित रहता है क्यंकि अबतक आनंद कहीं नही गया रहता है स्नातक की पढ़ाई के लिए बाहर जाने की बात से वह असन्तुष्ट रहता है मगर माँ-बाप के सामने उजागर नही करता। आनंद किताबो की दुनिया के नीचे दब गए रहता है परन्तु समाज के क,ख,ग से वंचित रहता है। आनंद में इतनी काबिलियत रहती है कि वह भी उसी शहर में रहकर अमित के साथ उसी महाविद्यालय से स्नातक कर अपने सपने को उड़ान दे सकता था परन्तु घरवालों को मंजूर कहाँ। अमित किताबो के साथ-साथ समाज को भी पढ़ने में दिलचस्पि रखता था, खेलकूद हो या फिर स्वयं के हक़ के लिए लड़ना हो सभी मे आगे रहता था। दोनों भाइयों की पढ़ाई आगे बढ़ती रहती, इधर अमित उसी शहर में रहकर महाविद्यालय की पढ़ाई के साथ सरकारी नॉकरी की ओर झुकाव बनाने लगता है, प्रतियोगी परीक्षाओं के बारे में  पता करने लगता है उन विषयों को गहराई से अध्ययन में जुट जाता है, साथ ही अन्य लोगों से बातें करके वह स्वयं के साथ ओरों को भी भांपता है, समाज मे कई प्रकार की परिस्थिति से उलझे लोगों से बाते करता कुछ सफल लोगों से कुछ असफल लोगों से। मगर आनन्द शहर से दूर अपनी दुनिया मे मानो उलझा हुआ रहता है छोटी-छोटी चीजों को लेकर मानसिक रूप से बड़ी समस्या समझ कर उलझन में फंस गए रहता है। शाम होते ही अपने निवास के निकट एक नदी के किनारे जाकर बैठे रहता। फिर आकर घरवालों से फोन के ज़रिए बात करता मगर कुछ खुलकर कहता नही था सारी बातें मन मे दबाए रहता। वहां वह कभी उड़ते चिड़ियों को देखकर अपने ऊपर आये घरवालों की ज़िम्मेदारी के बारे में सोचता कि कैसे उसके माता-पिता उसे बड़े डॉक्टर के रूप में बनते देखना चाहते हैं, उड़ान भरे हुए देखना चाहते हैं। उसके साथ पढने वाले अन्य छात्रों में वह अपने भाई अमित को देखता, तो कई छात्रों को दिनभर किताब पकड़े ध्यानमग्न होकर पढ़ते देखता मगर आनन्द न तो केवल उलझा हुआ रहता है बल्कि वह उन छात्रों से दूर जाने की भी कोशिस करता है। स्कूली दिनों से लेकर यहां महाविद्यालय की पढ़ाई तक मे न तो उसका कोई मित्र रहता है न ही किसी से खास लगाव। किताब के ज्ञान के अतिरिक्त आनन्द सामाजिक ज्ञान,व्यवहार से काफी दूर हो गए रहता है। आनन्द की पढ़ाई चलते रहती है उसी बीच उसके महाविद्यालय का प्रथम परीक्षा आयोजित हुई रहती है अपने परीक्षा को लेकर आनंद चिंतित रहता है क्योंकि अपने घर से दूर एक अलग माहौल में आ जाता है जहां उसका बिल्कुल मन नही लगता आनन्द परीक्षा में शामिल ज़रूर होता है मगर केवल शारीरिक रूप से मानसिक रूप से वह केवल चिंता करते रहता है। कुछ हफ्ते बाद उसका परिणाम आता है जो कि हमेशा की भांति बहुत कम रहता है। फोन करके परीक्षा परिणाम के बारे में अपने घर मे बताता है तो आनन्द के पिता फोन पर आते हैं आनंद रोज़ की तरह बातें आधी-अधूरी कहता है फिर अपनी माँ को अपने परिणाम के बारे में बताता है तो उसकी माँ उसे समझाती हैं और कहती हैं "बेटा तुम्हे ऊंची उड़ान भरनी है कभी-कभी हार को स्वीकार कर कुछ सीखना चाहिए" यह कहकर उसकी माँ फोन रख देती है मगर फोन की बातें आमने सामने कही गयी बातों से काफी अलग रहती है। आनंद रोज़ के शाम की तरह फिर उसी नदी किनारे बैठता है मन मे उसके यही विचार आता है कि केवल पढ़ाई ही करता था मैं उसमे भी परिणाम ठीक नही आये मेरे, मैने मा-पिता की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
आनन्द ये सब सोचता रहता है, उस शाम आनन्द कितना किताबो के बोझ नीचे दबा था उसके एकमात्र परीक्षा में अंक कम आने से उसके नकारात्मक सोंच से पता चलता है। आनन्द सोचते सोचते  दुनिया को अलविदा कह देता है उस शाम मानो उस नदी की लहरें चीख-चीख कर रो रही हों। किताबो का ज्ञान ज़रूरी है मगर समाजिक ज्ञान के साथ संतुलित चले तो सार्थक है।

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