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नई जनरेशन

akhilesh Shrivastava 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक भारतीय युवा हमारी संस्कृति को भूलकर विदेशी संस्कृति अपना रहे हैं जो कि समाज के लिए भविष्य में घातक सिद्ध होगी 28854 0 Hindi :: हिंदी

* नई जनरेशन *


रंग ढंग नई जनरेशन के
हमको समझ न आए ।
सदी बीस को छोड़ के 
ये इक्कीसवीं सदी में आए ।।

देर रात तक जगने की
आदत इनके मन भाए ।
नौ बजे के बाद ही इनकी
गुडमॉर्निंग  हो पाए ।।

शर्ट-पेंट  ये नहीं पहनते
इन्हें टी शर्ट -जीन्स ही भाए ।
फटी जीन्स दाड़ी कपड़ों में
कूल लुक कहलाए ।।

चाचा -चाची बुआ -फूफा 
कहने में ये शर्माएं ।
बोलकर अंकल -आंटी 
 सबको ये मार्डन कहलाएं ।।

छोटी जगह में रहना 
इनको बड़ा कष्ट पहुंचाए ।
देख शहर की चकाचौंध 
इन्हें शहर में रहना भाए ।।

हिन्दी बोलन में शर्माएं 
अंग्रेजी गले लगाएं ।
अपनी माता को छोड़ के
ये स्टेप मदर अपनाएं ।।

रिश्ते नाते नहीं मानते 
दोस्त ही मन में भाए ।
अपनों से ये बात करें न 
दूजों से बतयायें ।।

पापा-मम्मी नहीं बोलते 
मोम डेड कहलाएं ।
भाई बहिन आपस में
सिस -ब्रो बन जाएं ।‌।

 घर परिवार के रिश्तों
और बूढ़ों से ये कतराएं ।
रिश्ते वही निभायें जो
इनके मन को भाएं।।

बड़ों के पैरों को छूने में
इनको शर्म है आए ।
हैलो हाय करके ये 
अपना शिष्टाचार निभाएं ।।

बर्थ डे घर में नहीं मनाते 
होटल में ये जाएं ।।
घर के देशी व्यंजन छोड़
 ये पिज़्ज़ा बर्गर खाएं ।।

चाय -छांछ पीने वाले तो 
बेक वर्ड  कहलाएं ।
सिगरेट और शराब पियें 
तो फारवर्ड बन जाएं ।।

खेलकूद का मतलब 
 इनको समझ न आए ।
नेट -टेब मोबाइल में 
इनका समय पास हो जाए ।

बड़ी विडंबना है इनकी 
अब इन्हें कौन समझाए।
विश्व में भारत की संस्कृति
 ही सर्वश्रेष्ठ श्रेष्ठ कहलाए ।।

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