संदीप कुमार सिंह 01 May 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5319 0 Hindi :: हिंदी
सर्व मंगल मांगल्ए आदिपुराण, कुंठित निकृष्ट परेशान। मानसिकता विचलित होती, संगम विचारों में नव जावक नौजवान। जब आदिमानव रहते थे नंगा, खाते कंदमूल कच्चा मांस। जैसे-जैसे ज्ञान बढ़ा, हुआ विकास। भूकंप भूचाल ठोस कछुआ कवच, विभक्त होती धर्म धर्मावलंबियों के विचार। ना आदि ना अंत, कहां शुरू कहां खत्म। असीमित अथाह माहासागर, तरंग रूपी हलोरें कभी यहां कभी वहां। कहीं पर जाम, कहीं पर प्यास। क्या खूब बनाई परमात्मा महान ? गोष्ठी संगोष्ठी में भीड़ भाड़। प्रवचनों में लीन तल्लीन जुझारू इंसान, ना अति कर ना कर कम, मध्यम में रहकर जीवन सफल। तालों में ताल नैनीताल, कलियों में कली कश्मीर की कली। नई भारत के नई तस्वीर, को ये तेरा योगदान है। पवन वेग की तरह चलता, जो विश्व में नाम है। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....