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मंद-मंद गति से गतिमान शीतलता लिए

Uday singh kushwah 08 Jul 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत गूगल याहू बिंग 5390 0 Hindi :: हिंदी

विस्तार....शीर्षक 
कहीं किसी रोज उस किनारे के 
उस पार बजती है सुमधुर ध्वनि,
र्कणप्रिय लिए विस्तार करती 
मन के संताप दूर करती शनै शनै...!

जब भी उठती हृदय में हूंक 
सरिता सुनती मौन और मूक,
करती किलौलें हरती हर संताप
करती मन को उच्छवास ...!

जब भी बजती वो मधुर बांसुरी,
मन हृदय को करती आकृषित ,
अपने में नव विश्वास लिए ...
क्षितिज पर आ गये तारे सुनने
को आतुर ...!

कल-कल-करती सरिता में फिर
नव- नाद न हो ,रात्रि भी सिमटी 
वैठी सुनने को आतुर नीड से खग
देख सुन-सुर में सुर मिला रहें...!

चांदनी वैठी नींद में डूबी सुनने
हृदय संगीत मन ही मन मुस्करा
रहे प्रेम के बाने को पहन शशिरुप
पवन वह रहा शनै शनै....!

करतीं भोर स्वागत् 
और मोर नाचता घनघोर
नीलाकाश में टिमटिमा रहे तारे
जाते अपनी छोर... शनै शनै...!

मंद-मंद गति से गतिमान शीतलता लिए
 चली विश्वास उर में लिए करती किलोंलें
तट से मिलने प्रीतम से ,
तोड़ दूं सारे बंधन एकसार हो जाने के
लिए...!
स्वरचित एंव मौलिक रचना है
कवि यू.एस.बरी
लश्कर, ग्वालियर मध्यप्रदेश

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